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________________ प्रमेयचन्द्रिकाढीका श. १ उ. ६ सू. १ सूर्यप्रकाशक्षेत्रवक्तव्यता स्पर्श शीघ्रमागच्छति ‘अस्थमंतेवि मरिए ' अस्तमयन्नपि सूर्यः ‘तावइयाओ चेव उवासंतराओ चक्खुप्फासं हवं आगच्छइ' तावतश्चैवावकाशान्तरात् चक्षुःस्पर्श शीघ्रमागच्छति, उदयास्तमनयोः कालयोश्चक्षुर्विषयतायां नास्ति भेद इति भावः । पुनः प्रश्नयति 'जावइयं णं भंते खित्तं ' यावत् खलु भदन्त ! क्षेत्रम् ' उदयते सूरिए' उदयन् मूर्यः 'आयवेणं' आतपेन 'सबओ' सर्वतः सर्वासु दिक्षु 'समंता' स्पर्श का विषय होता है (अस्थमंते वि सूरिए तावइयाओ चेव उवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वं आगच्छइ) उतनी हो दूर से अस्त होता हुआ भी सूर्य चक्षुःस्पर्श का शीघ्र विषय होता है। उदयकाल और अस्तकाल में चक्षुरिन्द्रियद्वारा गम्य होने में काल भेद नहीं है । (जावयं णं भंते! खित्तं) हे भदन्त! जितने क्षेत्रको(उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंताओभासेइ) उदय होता हुआ सूर्य अपने आतपसे समस्त दिशाओंमें समस्त विदि. शाओंमें प्रकाशित करता है-ईषत्प्रकाशयुक्त करता है कि जिससे मोटी से मोटी वस्तु दिखती है । ( उज्जोएइ) उद्योतित करता है कि जिससे स्थूल वस्तु दिखती है। (नवेइ ) तपाता है कि जिससे ठंड दूर हो जाती है, अथवा उष्णकी अधिकतासे सूक्ष्म पिपीलिका (कीडी) आदि भी जिससे दिख जाती है। (पभासेइ ) खूब तपाता है, अथवा तापकी अधिकतासे सूक्ष्म से भी सूक्ष्म वस्तु जिससे दिख जाती है। (अस्थमंतेविणं मूरिए) अस्त होता हुआ भी मूर्य (तावइयं चेव खित्तं) उतने ही क्षेत्रको (आयवेणं) अपने आतपसे-प्रकाशसे-(सव्वओ समंता) समस्त छ. “अत्थत्मते वि सूरिए तावइयाओ चेव उवासतराओ चक्खुप्फास हव्वं आगच्छइ" એટલા જ અંતરેથી અસ્ત થતો સૂર્ય પણ જલ્દી ચક્ષુસ્પર્શનો વિષય બને છે ઉદયકાળ અને અસ્તકાળમાં ચક્ષુઈન્દ્રિય વડે ગમ્ય થવામાં કાળભેદ નથી. ___“जावइयणं ते ! खित्तं' 3 न्य! २८॥ क्षेत्रने "उदयते सूरिए आयवेणं सव्वओ समता ओभासेइ उज्जोएइ. तवेइ, पभासेह' मय थतसूर्य पोताना પ્રકાશથી સમસ્ત દિશાઓને અને વિદિશાઓને પ્રકાશિત કરે છે ઉદ્યોતિત કરે છે. તપાવે છે, અને પ્રભાસિત કરે છે, કે જેથી મોટામાં મોટી વસ્તુઓ દેખાય છે. તેને ઉદ્યોત એટલે, તેને પ્રકાશ એટલો છે કે જેથી સામાન્ય સ્થૂલ વસ્તુ પણ દેખાય છે, તેને તાપ એટલો બધો છે કે જેથી ઠંડી દૂર થાય છે. તથા કિરણોની અધિકતાથી કીડી વગેરે પણ જેનાથી દેખાય છે, તેને પ્રભાસ એટલે मधे। छे, रथी सूक्ष्ममा सूक्ष्म वस्तु ५५ नारे ५ छ. “ अस्थमंते विणं सूरिए" भरत थत। सूर्य ५५ "तोवइयं चेत्र खित्त" शुसटसा क्षेत्रने (आयवेणं) पोताना प्रशथी "सव्वओ समता" समस्त हिशा मन विमे। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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