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________________ भगवतीसूत्रे स्पर्शस्तम् चक्षुःस्पर्शम् , 'हव्वं' शीघ्रम् , स च सर्वाभ्यन्तरमण्डले सप्तचत्वारिंशद्योजनानां सहस्रेषु द्वयोः शतयोस्त्रिषष्टौ च साधिकायां वर्तमान उदये दृश्यते, त्रिषष्टयधिकशतद्वयोत्तरसप्तचत्वारिंशत्सहस्र (४७२६३) योजने वर्तमानः सूर्य उदयकाले दृश्यते इति भावः। एवमेवास्तसमयेऽपि एतावत एव दुरात्परिदृश्यमानो भवति किमिति प्रश्नः । भगवानाह 'हंते' त्यादि 'हंता गोयमा' हन्त हे गौतम ! 'जावइयाओ णं' यावतः खलु 'उवासंतराओ' अवकाशान्तरात् आकाशविशेषात् ' उदयंते मूरिए ' उदयन उद्गच्छन् सूर्यः ' चक्खुप्फासं हव्वं आगच्छइ ' चक्षुःउससे भिड़ता है क्यों कि चक्षु इन्द्रिय अप्राप्यकारी मानी गई है । इसलिये चक्षुःस्पर्श का तात्पर्य चक्षु के साथ वह स्पर्श जैसा करता है वास्तव में स्पर्श नहीं करता है ऐसा माना गया है। वह सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में कुछ अधिक ४७२६३ योजन में वर्तता हुआ उदयकाल में दिखलाई देता है। इसी तरह वह इतनी ही दूरी से अस्त होने के समय में दिखलाई देता है क्या ? ऐसा यह प्रश्न है । तात्पर्य इस शंका का यह है कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में रहता है तब वह यहां से कुछ अधिक ४७२६३ योजन दूर रहता है उसे चक्षुरिन्द्रिय इतनी दूर पर रहते हुए भी देख लेती है। तो शंकाकार पूछता है कि जब चक्षुरिन्द्रिय उद्य होते समय इतनी अधिक दूर पर रहे हुए सूर्य को देख लेती है तो क्या वह जब अस्त होता है तब भी इतनी दूर रहे हुए सूर्य को देख लेती है ? इसका उत्तर देते हुए भगवान् कहते हैं कि- ( हंता गोयमा !) हां गौतम ! (जावइयाओ णं उवासंतराओ उदयंते मूरिए चक्खुप्फासं हव्वं आगच्छइ ) जितने अवकाशान्तर से उदय होता हुआ सूर्य चक्षुःચક્ષુ તેને અડે છે, કારણ કે ચક્ષુઈન્દ્રિયને અપ્રાકારી માનવામાં આવેલ છે. તે સૂર્ય ઉદય કાળે ૪૭૨૬૩ એજનથી કંઈક અધિક અંતરે સભ્યન્તર માંડલામાં દેખાય છે. શું તે એટલેજ અંતરેથી અસ્ત પામતી વખતે પણ દેખાય છે શું? એવો પ્રશ્ન અહીં પૂછો છે. તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે સૂર્ય સર્વાભ્યન્તર માંડલામાં રહે છે ત્યારે તે અહીંથી ૪૭૨૬૩ એજનથી કંઈક અધિક અંતરે દેખાય છે. તેને એટલે દરથી પણ ચક્ષુરિન્દ્રિય જોઈ શકે છે. તે પ્રશ્ન એ ઉદભવે છે કે ઉગતી વખતે જે ચક્ષુ ઈન્દ્રિય એટલે બધે દૂર રહેલા સૂર્યને જોઈ શકે છે તે શું આથમતી વખતે પણ તે એટલા જ અંતરે રહેલા સૂર્યને જુવે છે ? तना उत्तर मगवान महावीरस्वामी या प्रमाणे मापे छ- " हंता गोयमा!" होगीतम! " जावइयाओ णं उवासंतराओ उदय ते सूरिए चक्खुप्फासं हवं જાફ ” જેટલા અવકાશાન્તરેથી ઉદય થતે સૂર્ય ચક્ષુસ્પર્શને વિષય બને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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