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________________ १७८ भगवतीसूत्र वन्दित्वा नमस्यित्वा नात्यासन्ने नातिदूरे शुश्रूषमाणः नमस्यन् अभिमुखं विनयेन पाञ्जलिपुटः" इति संग्रहः, ‘एवं वयासी' एवमवादी-वक्ष्यमाणपकारेणाकथयत्-किमवादीदित्याह-'एगंतवाले' इत्यादि। 'एगंतवाले णं भंते' एकान्तबालः खलु भदन्त !, एकान्तवाल:-मिथ्यारष्टिरविरतो वा 'मणुस्से' मनुष्यः 'किं णेरइयाउयं पकरेइ ' किं नैरयिकायुष्कं प्रकरोति, तत्रैकान्तबाल इत्यत्र एकान्तेति पदं मिश्रदृष्टिकजीवं व्यावर्तयति । 'मणुस्साउयं पकरेइ' मनुष्यायुष्कं प्रकरोति, 'देवाउयं पकरेइ ' देवायुष्कं प्रकरोति ? ' णेरइयाउयं किच्चा णेरइएमु उववज्जइ ' नैरयिकायुष्कं कृत्वा नैरयिकेषु याद गौतम ने प्रभु को वन्दना और नमस्कार किया। बाद में वे अपने उचित स्थान पर धर्म सुनने की अभिलाषा से प्रभु के सन्मुख नमस्कार कर दोनों हाथ जोड़ कर बैठ गये। और इस प्रकारसे पूछने लगे ( एगंत बालेणं भंते मणुस्से कि णेरइयाउयं पकरेइ ?) हे भदन्त एकान्तबाल क्या नरकायुष्क का बंध करता है ? (तिरिक्खाउयं पकरेइ ?) तिर्यश्चायु का बंध करता है ? ( मनुस्साउयं पकरेइ ) मनुष्यायु का बंध करता है ? ( देवाउयं पकरेइ ) देवायु का बंध करता है ? यहां एकान्त शब्द का अर्थ मिथ्या दृष्टि अथवा अविरत-बिरति विना का जीव है। बाल पद के साथ जो एकान्त विशेषण पद का प्रयोग किया है उससे यह षात सूचित होती है कि जो जीव मिश्रदृष्टि वाला है वह एकान्त बाल नहीं है । अतःइस मिश्र दृष्टि वाले की व्यावृत्ति के निमित्त वाला पद के साथ एकान्त शब्द विशेषणरूप से प्रयुक्त किया गया है । (णेरइया નગરમાં પાછા ફર્યા. ત્યાર બાદ ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને, ધર્મતત્વનું શ્રવણ કરવાની અભિલાષાથી બને હાથ જોડીને શિર નમાવીને प्रभुनी सन्भुम सी गया मने भा प्रमाणे प्रश्न पूछया-( एगंत बालेणं भंते !. मगुस्से किं णेरइयाउयं पकरेइ ? ) 3 भगवन् ? सन्त मास , शु. न२४ायुध्यनो धांधे छ. १ ॐ (तिरिक्खाउयं पकरेइ ? ) तिय यना मायुनी ॥ध मांधे छ? (मणुस्साउयं पकरेइ) भनुष्यना आयुने। म सांधे ? ( देवाउयं पकरेड) वताना मायुष्यना धांधे छ १ मही એકાન્તબાલને અર્થ મિથ્યાદૃષ્ટિ અથવા અવિરતિ (વિરતિ વિનાને) જીવ સમજે. બાલ શબ્દ સાથે એકાન્ત વિશેષણને પ્રયોગ કરવાનું કારણ એ છે કે જે જીવ મિશ્રદૃષ્ટિવાળા હોય છે તેને એકાન્તબાલ કહી શકાતું નથી. તેથી મિશ્રદૃષ્ટિવાળાને સમાવેશ ન કરવા માટે એકાન્ત વિશેષણ બાલ પદની સાથે योल्पामा माव्युं छे. (णेरइयाउयं किच्चा, रइएसु उववज्जइ) ते ४ान्तमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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