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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ ० ७ सू० ४ गर्भस्वरूपनिरूपणम् १४३
औदारिकवैक्रियाहारकाणि शरीरत्रितयानि प्रतीत्यसमाश्रित्य 'असरीरी वकमइ' अशरीरी व्युत्क्रामति, औदारिकादिशरीरत्रितयापेक्षया औदारिकादिशरीरत्रयं विहाय जीवो गर्भे समुत्पद्यमान अशरीरी समुत्पद्यते इति, 'तेयाकम्माई-पडुच्च' तैजसकामणे शरीरे प्रतीत्यसमाश्रित्य 'ससरीरी वक्कमइ । सशरीरी व्युत्क्रमति, तैजसकामणशरीरद्वयापेक्षया जीवः सशरीरी समुत्पद्यते इति भावः । ' से तेणटेणं गोयमा०' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते, स्यात् कदाचित् अशरीरी कदाचित्सशरीरी गर्ने व्युत्क्रामति, अयमाशयः तैजसकार्मणशरीरद्वयसंबन्धस्य (गोयमा ! ओरालिय-वेउव्विय-आहारयाइं पडुच्च असरीरी वक्कमह) हे गौतम ! जीव को जो " अशरीरी उत्पन्न होता है " ऐसा कहा है उसका कारण यह है कि उस समय उस के औदारिक वैक्रिय और आहारक इन तीन शरीरों में से एक भी शरीर नहीं होता है । इस अपेक्षा विना शरीरके ही जीव उत्पन्न होता है । (तेया-कम्माइं पडुच्च ससरीरी बक्कमइ ) तैजस और कार्मण इन दो शरीरों की अपेक्षा जब की जाती है तब वह शरीरसहिंत ही गर्भ में उत्पन्न होता है, ऐसा कहा जाता है। (से तेणटेणं० ) इस कारण हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं कि जीव गर्भ में शरीररहित और शरीरसहित भी उत्पन्न होता है। तात्पर्य कहने का यह है कि-"सर्वस्य" सूत्र के अनुसार तैजस और कार्मण ये दो शरीर समस्त संसारी जीवों के होते हैं, इसलिये गर्भ में उत्पत्ति होने के समय में भी इनका सद्भाव रहता है अतः इस अपेक्षा से जीव गर्भ में शरीरसहित भी उत्पन्न होता है-ऐसा कथन बन जाता है। तथा ___ -से केणटेणं०४त्याहि मान ! २मा ५ २॥ ४२ मे ४ा छ। 4 ગર્ભમાં શરીરસક્તિ પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને શરીર રહિત પણ ઉત્પન્ન થાય છે?
उत्तर--(गोयमा ! ओरालिय, वेउव्विय, आहारयाई', पडुच्च असरीरी वक्कमइ) 3 गौतम। " 04 मशरी उत्पन्न थाय छ,” मेरे युं छे તેનું કારણ એ છે કે તે સમયે તેને ઔદારિક વૈકિય અને આહારક, એ ત્રણ શરીરમાંનું એક પણ શરીર હોતું નથી. એ દષ્ટિબિન્દુથી ઉત્પન્ન થતી વખતે ७१ मशरी डाय छे, तेयाकम्माई पडुच्च ससरीरी वक्कमइ) तथा તૈજસ અને કાર્માણ, એ બે શરિરની અપેક્ષાએ એમ કહી શકાય કે જીવ शरीरसहित ४ सभा उत्पन्न थाय छे. से तेणटेणं. त्याहि गौतम ! તે કારણે હું એવું કહું છું કે જીવ ગર્ભમાં શરીરરહિત પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને शरीरसहित ५ त्पन्न थाय छे. तात्पर्य से छ:-" सर्वस्य " से सूत्रानुसार તૈજસ અને કામણ. એ બે શરીર તમામ સંસારી જીવોને હોય છે. તેથી ગર્ભમાં જીવની ઉત્પત્તિ થતી વખતે પણ તેમને સદ્ભાવ હોય છે, એ દૃષ્ટિએ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨