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२०७२
भगवती प्रज्ञताः 'तं जहा' तद् यथा 'स्वीय अरूबीय' रूपिणचारूपिणश्च रूपिणो मूर्ताः पुद्गलाः अरूपिणोऽमूर्ताः धर्मास्तिकायादयः, 'जे रूवी ते चउविहा पण्णत्ता' ये रूपिणः पुद्गलास्ते चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद् यथा 'खंधा खंघदेसा-खंधपएसा परमाणु पोग्गला' स्कन्धाः स्कन्धदेशाः स्कन्धप्रदेशाः परमाणुपुद्गलाः तत्र स्कन्धाः परमाणुसमुदायात्मका अवयवि न इत्यर्थः स्कन्धदेशा बादयो विभागाः स्कन्धमदेशास्तस्यैव निरंशा अवयवाः परमाणुपुद्गला अवयवा. अजीव हैं वे दो प्रकार के हैं-(तंजहा) जैसे-(रूवी य अरूवी य) एकरूपी अजीव और दूसरा अरूपी अजीव, रूपी शब्द का अर्थ-जिसमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ये पाये जाते हैं ऐसा मूर्तिक पदार्थ-और जिसमें ये चार गुण नहीं पाये जाये ऐसा अमूर्तिक पदार्थ अरूपी कहा गया है। मूल में अजीव के धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्लास्तिकाय और काल ऐसे पांच भेद हैं। इनमें पुद्गलास्तिकाय को छोड़कर बाकी चार अस्तिकाय अरूपी हैं और पुद्गलास्तिकाय रूपी है। (जे रूवी ते चउन्विहा पण्णत्ता) रूपी पुद्गलास्तिकाय चार प्रकार का कहा गया है (तंजहा) जैसे (खंधा, खंघदेसा, खंधपएसा, परमाणुपोग्गला ) स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और परमाणुपुदल, तथा परमाणु समुदायात्मक जो अवयवी है वह स्कंध है, स्कंध के दो तीन आदि अष्टपथगभूता जो विभाग हैं वे स्कंधदेश हैं। स्कंधदेश के जो निरंश विभाग हैं वे स्कंधप्रदेश हैं। तथा २ ७३ छे ते मे २॥ छे. (तं जहा) रेभ ( रुवीय अरूवी य) (१)३५ी म भने (२) म३पी म0प. सभा ३५, २स, गध २५श હોય છે એવા સૂતિક પ્રદાર્થને “રૂપી” કહે છે, અને જેમાં એ ચાર ગુણ હોતા નથી એવાં અમૂર્તિક પદાર્થ ને “અરૂપી” કહે છે. અજીવના મૂળ પાંચ ભેદ છે ૧, ધર્માસ્તિકાય, ૨, અધર્માસ્તિકાય, ૩, આકાશાસ્તિકાય ૪, પુદ્દગલાસ્તિકાય અને ૫, કાળ તેમાંના પુદ્ગલાસ્તિકાય સિવાયના ચાર અસ્તિકાય
३५ छ ५ स्तिय ३५छे.(जे रूवी ते चउव्विहा पण्णत्ता ?) ३५. पुरास्तियन यार ४१२ नीये प्रमाणे छ ( खंधा, खंधदेसा, खंधपएसा परमाणुपोग्गला )(१) ४५, (२) २४५हेश, (3) २४५प्रदेश मने (४) ५२. માણુ પુલપરમાણુના સમુદાય રૂપ જે અવયવી છે તેને સ્કંધ કહે છે. કંધના બે ત્રણ આદિ અપૃથકરૂપ જે વિભાગે છે તેમને સ્કંધદેશ કહે છે. કે ધદેશના જે નિરંશ (અવિભાજ્ય) વિભાગ છે તેમને સ્કંધપ્રદેશ કહે છે. તથા અવયવ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨