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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०१० सू० ४ आकाशस्वरूपनिरूपणम् १०७३ चयविभाववर्जिताः परमाणवः एवेति, 'जे अरूवी ते पंचविहा पण्णता' ये अरूपिणस्ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा धम्मत्थिकाए' इत्यादि. 'तं जहा धम्मत्थिकाए' तद् यथा धर्मास्तिकायः। धर्मास्तिकायः नास्ति धर्मास्तिकायस्य देशरूपः१ धर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः२ अधर्मास्तिकायः अधर्मास्तिकायोऽपि नास्ति अधर्मास्ति कायस्य देशरूपः ३ अधर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः४ अद्धा-कालस्तल्लक्षणः समय:क्षणोद्धासमयः स चैक एव वर्तमानक्षणलक्षणः, अतीतानागतयोः सत्त्वाभावात् ।। अवयव अवयवी भाव से वर्जित जो पुद्गल हैं वे परमाणुपुद्गल हैं। यहां परमाणुपुद्गल वे ही लिये गये हैं जो स्कंध अवस्था को प्राप्त नहीं हुए हैं। (जे अस्वी ते पंचविहा पण्णता) तथा जो अरूपी अजीव है वह पांच प्रकार का कहा गया है-(तंजहा ) जैसे (धम्मस्थिकाए, नो धम्मस्थि. कायस्स देसे, धम्मस्थिकायस्स पएसा अधम्मस्थिकाए, नो अधम्मत्थिकायस्सदेसे, अधम्मस्थिकायस्स पएसा, अद्धासमए ) धर्मास्तिकाय १ धर्मास्तिकाय के प्रदेश २ अधर्मास्तिकाय ३ अधर्मास्तिकाय के प्रदेश ४ और अद्धासमय ५ यहां पर धर्मास्तिकाय का देश और अधर्मास्तिकाय का देश नहीं माना गया है। ऐसे क्यों नहीं माना गया है सो इस विषय में स्पष्टीकरण इस प्रकार से है-जीव और पुद्गल अनेक हैं, इसलिये एक जीव जितने स्थान में समाता है अथवा एक पुद्गल जितने स्थान को रोकता है उतने स्थान में संकोच विस्तार गुण से युक्त होने के कारण अनेक जीव और पुद्गल समा सकते हैं। इस कारण जीव, जीवઅને અવયવી ભાવથી રહિત જે પુલ છે, તેને પરમાણુ પુલ કહે છે અહી પરમાણુ પંદલ તેમને જ કહ્યા છે કે જેઓએ સ્કંધ અવસ્થા પ્રાપ્ત કરી નથી. (जे अरूवी ते पंचविहा पण्णत्ता) सभी ना नीय प्रमाणे पांय प्रार ४॥छ (धम्मत्थिकाए,ना धम्मस्थिकायस्स देसे, धम्मस्थिकायस्स पएसा) अधम्मथिकाए, नो अधम्मत्थिकायस्स देसे,अधम्मत्थिकायस्स पएसा अद्धासमये) (१)धमस्तिय,(२) धर्मास्तियना प्रदेश (3)AUमस्तिय (४) मधुमस्तिय प्रदेश भने(५) 4. દ્ધાસમય (કાળ) અહીં ધર્માસ્તિકાયને દેશ અને અધર્માસ્તિકાયને દેશ ગ્રહણ કરવાને નથી. અહીં ધર્માસ્તિકાયના અને અધમસ્તિક યનાદેશને શા માટે અરૂપી અજીવન પ્રકાર ગણવામાં આવ્યા નથી તેનું સ્પષ્ટીકરણ નીચે પ્રમાણે છે-જીવ અને પુતલ અનેક છે. તેથી એક જીવ જેટલા સ્થાનમાં સમાય છે અથવા એક પુતલ જેટલી જગ્યા રોકે છે, એટલી જગ્યામાં સકેચ વિસ્તાર ગુણથી યુક્ત भ १३५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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