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________________ भगवतीसूत्रे गुणतो ग्रहणगुण:- गुणतः कार्यत इत्यर्थः तथा च ग्रहणं परस्परेण सम्बन्धन जीवेन वा औदारिकादिभिः शरीर प्रकारैरिति ॥ मू० १॥ अवतरणम्-धर्मास्तिकायादीनां स्वरूपं निरूप्य तदेकदेशे धर्मास्तिकायत्वमस्ति न वेत्यादि प्ररूपयन्नाह—" एगे भंते" इत्यादि । मूलम्-एगे भंते! धम्मस्थिकाएपयसे धम्मस्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया ? गोयमा! णो इणो समहे एवं दोणि वि, तिणि वि, चत्तारि वि, पंच छ सत्त अट्र णव दस संखेज्जा असंखेजा. भंते! धम्मस्थिकायपएसाधम्मस्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया। गोयमा! णो इण? समटे एगपएसूणे वि य णं भंते ! धम्मस्थिकाए त्ति बत्तव्वं सिया, णो इणहे समटे । से केणट्रेणं भंते! एवं वुच्चइ एगेधम्मत्थिकायस्त पएस नो धम्मस्थिकाए त्ति वत्तवं सिया जाव एगपएसूणे वि य णं धम्मस्थिकाए नो धम्मस्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया । से णूणं गोयमा ! खंडे चक्के सगले चक्के ? भगवं सयले चक्के नो खंडे चक्के, एवं छत्ते, चम्मे, दंडे, इसे, आउहे मोयए, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ एगे धम्मथिकायपदेसे णो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया,जाव एगपएसूणे वियणं धम्मस्थिकाए णो धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया। से कि वाला है । गुण शब्द का अर्थ कार्य और ग्रहण शब्द का अर्थ आपस में संबंध होना है । इसका तात्पर्य यह है कि औदारिक आदि पुद्गलों के साथ जीवका संबंध है, अथवा जीव औदारिक आदि अनेक प्रकार के पुद्गलों को ग्रहण करता है यही पुद्गल का ग्रहण होना गुण है॥सू०१॥ પુદ્ગલાસ્તિકાય ગ્રહણગુણવાળું છે, ગુણને અર્થ કાર્ય અને ગ્રહણનો અર્થ આપસમાં સંબંધ છે, એ થાય છે. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે ઔદારિક આદિ પુદગલની સાથે જીવન સંબંધ છે, અથવા જીવ ઔદારિક આદિ અનેક પ્રકારનાં પુદ્ગલેને ગ્રહણ કરતા રહે છે. એને જ પુલાસ્તિકાયને ગ્રહણ ગુણ કહે છે કે સૂ ૧છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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