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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०१०९०१ अस्तिकायस्वरूपनिरूपणम् १०३१ द्रव्यतः खलु पुद्गलास्तिकायोऽनन्तानि द्रव्याणि द्रव्यतोऽनन्तद्रव्यरूपत्वं पुद्गलास्त्तिकायस्येत्यर्थः । “खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते" क्षेत्रतो लोकप्रमाणमात्रः "कालओ न कयावि नासी जाव णिच्चे " कालतो न कदाऽपि नासीत्-यावन्नित्यः अत्र यावत्पदेन न कदापि ' न भवइ ' न कदापि न भविस्सइ' किन्तु पूर्वमप्यासीत् इदानीमपि वर्त्तते अनागतेऽपि भविष्यति शाश्वतोऽव्ययोऽवस्थित इत्यादीनां ग्रहणं भवति । " भावओ वण्णमंते गंधरसफासमंते " भावतो वर्णवान् गंधरसस्पर्शवान् भावतः वर्णवान् गन्धवान् रसवान् स्पर्शवान् इत्यर्थः। “गुणओ गहणगुणे" पोग्गथिकाए अणताई दवाई) द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय अनन्तद्रव्यरूप है । (खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते ) क्षेत्र की अपेक्षा से पुद्रलास्तिकाय लोकप्रमाणमात्र है । ( कालओ न कयाइ नासी जाव णिच्चे) काल की अपेक्षा से पुद्गलास्तिकाय कभी नहीं था ऐसा नहीं है यावत् वह नित्य है । यहां यावत् पद से ( न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भविंसु भवइ भविस्सइ धुवेणिइए सासए अक्खए अन्यए अवडिए) इस पाठ का संग्रह किया गया है । अर्थात् पुद्गलास्तिकाय भूतकाल में नहीं था यह बात नहीं, था ही, वर्तमानकाल में नहीं है यह बात नहीं, है ही भविष्यत् कालमें नहीं होगा यह बात नहीं, होगा ही। (क्यों कि यह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है ) और नित्य है ( भावओ वणमंते गंधरसफास मंते) भाव की अपेक्षा पुद्गलास्तिकोय वर्णवाला है, गंध रस और स्पर्शवाला है । (गुणओ गहणगुणे ) गुण की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय ग्रहण गुण (दव्वो ण पोग्गस्थिकाए अण ताई दव्वाई) द्रव्यनी अपेक्षा Yal. स्तिय सनत द्रव्य३५ छ. (खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्त) क्षेत्रनी अपेक्षा से १४. स्तिय प्रमाण छ. (कालओ न कयाइ नासी जाव णिच्चे) भनी अपेक्षा એ પુદગલાસ્તિકાયનું અસ્તિત્વ કઈ પણ કાળે ન હોય એવું બન્યું નથી, કારણ કે તે નિત્ય છે. અહીં જાવ (પર્યન્ત) પરથી નીચેને સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરવાને छ-(न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, धुवे, णिइए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवदिए ) मेटले पुरास्तिप्राय भूतमा न तुं सj બન્યું નથી વર્તમાનમાં નથી એવું પણ બનતું નથી અને ભવિષ્યમાં નહીં હોય એવું પણ બનવાનું નથી ત્રણે કાળમાં તેનું અસ્તિત્વ હોય છે જ, કારણ કે તે ધ્રુવ, નિયત, શાશ્વત, અક્ષય, અવ્યય, અવસ્થિત અને નિત્ય છે. ( भावआ वण्णमते गध, रस, फासमते) सापनी अपेक्षा हास्तिय १, गध, २५ अन २५ पाछे, (गुणओ गहणगुणे) अनी अपेक्षा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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