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________________ प्रमेयवन्द्रिका टी० ० २ उ० १० सू०२ अस्तिकायस्वरूपनिरूपणम् १०३३ खाइणं भंते ! धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया । गायमा! असंखेज्जा धम्मस्थिकाएपएसा, ते सव्वे कसिणा पडिपुण्णा, निरवसेसा एगगहणगहिया एसणं गोयमा ! धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया । एवं अधम्मत्थिकाए वि । आगासस्थिकाए वि जीवत्थिकाए वि, पोग्गलस्थिकाए वि एवं चेव, नवरं तिण्हंपिपएसा अणंता भाणियवा सेसं तं चेव ॥ सू० २॥ छाया-एको भदन्त ! धर्मास्तिकायमदेशो धर्मास्तिकाय इति वक्तव्यं स्यात् गौतम ! नायमर्थः समर्थः एवं द्वावपि त्रयोऽपि चत्वारोऽपि पश्चषट् सप्त अष्ट नव दश-संख्या___ धर्मास्तिकाय आदि पांच प्रकार के अस्तिकायों का स्वरूप निरूपण करके अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि धर्मास्तिकाय के एकदेश में धर्मास्तिकायता है या नहीं- ( एगे भंते ! धम्मत्थिकायपएसे ) इत्यादि। (एगे भंते ! धम्मत्थिकायपएसे धम्मत्थिकाए त्ति वत्तव्वं सिया ) हे भदन्त ! धर्मास्तिकायके एकप्रदेशको (यह धर्मास्तिकाय है ) ऐसा कहाजा सकता है क्या ? (गोयमा ! णो इणढे समठे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् धर्मास्तिकायका एकप्रदेशधर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता है।(एवं दोण्णि वि तिणि वि, चत्तारि वि, पंच, छ,सत्त,अट्ट, नव, दस, संखेज्जा,) इसी तरह से धर्मास्तिकाय के दो प्रदेश भी, तीन प्रदेश भी, चार प्रदेश भी, पांच प्रदेश भी, छह प्रदेश भी, सात प्रदेश भी आठ प्रदेश भी, नौ प्रदेश भी, दश प्रदेश भी धर्मास्तिकाय नहीं कहे जा ધર્માસ્તિકાય આદિ પાંચ પ્રકારનાં અસ્તિકાના રવરૂપનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર તે બતાવે છે કે ધર્માસ્તિકાયના એક દેશમાં ધર્માસ્તિકાયના साय छ नहीं-( एगे भंते ! धम्मत्थिकायपएसे ) त्यात सूत्राथ-(एगे भंते ! धम्मत्थिकायपएसे धम्मत्थिए त्ति वत्तव्य सिया) 3 महन्त ! ધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશને અનુલક્ષીને, (આ ધર્માસ્તિકાય છે,) એવું કહી शाय ५३ ? ( गोयमा ! णो इणटूठे समठे ) 3 गौतम ! से मथ ५२१२ નથી-એટલે કે ધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશને ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય નહી. (एवं दोण्णि वि, तिण्णिवि चत्तारि वि, पंच, छ, सत्त, अटु, नव, दस, संखेज्जा ) मे प्रमाणे यास्तियना मे, त्र, यार, पाय, ७ सात, म18, નવ, દસ વગેરે પ્રદેશને પણ ધર્માસ્તિકાય કહી શકાય નહીં. ધર્માસ્તિકાયના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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