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भगवतीस्त्रे
रकः प्रज्ञप्तः कथितः "तं जहा” तद् यथा “दव्यओ खेतओ कालो भावो गुणओ" द्रव्यता क्षेत्रवः कालओ भावतो गुणतः “दचओ णं घम्मस्त्रिकाम् एमे दधे " द्रव्यता खलु धर्मास्तिकायः एकं द्रव्यम् । अयश्च धर्मास्तिकायो द्रव्यरूपेण एकद्रव्यरूपो भवति नत्वनेकः 'खेत्तओ णं लोकपमाणमेत्ते " 'क्षेत्रतः खलु लोकममाणमावम् लोकप्रमाणं मात्रा यस्य स तथा लोकपरिमितक्षेत्र विस्तृत इत्यर्थः 'कालओ न कयाइ न आसी" कालतो न कदाचिदपि नासीत " न कथाइनत्थि" न कदाचित् नास्ति, "जाव णिच्चे" यावन्नित्यः, यावत्पदेन " न कयाइ न भविस्सइ भविसु भवइ भविस्सइ धुवे णियए सासए अक्खए गया है (तंजहा) वे पांच प्रकार इस के इस प्रकार से है-(दव्वओ, खेतओ, कालओ, भावओ, गुणओ) द्रव्य से धर्मास्तिकाय १, क्षेत्र से धर्मास्तिकाय २, काल से धर्मास्तिकाय ३ भाव से धर्मास्तिकाय ४ और गुण से धर्मास्तिकाक ५ (दव्वओणं धम्मत्थिकाए एगे दवे) द्रव्य की अपेक्षा से जब धर्मास्तिकाय का विचार किया जाता है तो यह धर्मास्तिकाय एक द्रव्य रूप होता है अनेकद्रव्यरूप नहीं। (खेत्तओणं लोकपमाणमेत्ते) क्षेत्र की अपेक्षा यह धर्मास्तिकाय लोकप्रमाणमात्र है अर्थात जितना बडा लोकहै उतना ही बडा यह है, इसको कारण यह है कि लोकाकाश में यह सर्वत्र व्याप्त है लोकाकाश ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं है कि जहां पर इस द्रव्य की अवस्थान (स्थिति) न हो। (कालओ न कयावि न आसी, न कयाइ नस्थि, जाच णिच्चे ) काल की अपेक्षा ऐसा कोई भी काल नहीं है कि जिस समय यह नहीं था और न वर्तमान काल ही ऐसा है कि जिसमें यह नहीं है न भविष्यत् काल ही (तंजहा) ते पाय प्रा। नीचे प्रमाणे छ-(दव्वओ, खेत्तओ, कालओ भावओ, गुपओ) (१) द्रव्यनी अपेक्षा भास्तिय, (२) क्षेत्रनी अपेक्षा धर्मास्ति
य, (3) अपनी मपेक्षा यास्तिय, (४) लावनी मपेक्षा घस्तिय. (दओण धम्मस्थिकाए एगे दुव्वे) द्रव्यने मनुसक्षीने से घास्तियना વિચાર કરવામાં આવે તે તે ધર્માસ્તિકાય એક દ્રવ્ય રૂપ છે, અનેક દ્રવ્યરૂપ नथी. (खेत्तओ ण लोकप्पमाणमेत्ते ) क्षेत्रनी मपेक्षा विया२ ४२वामा माये તે તે ધર્માસ્તિકાય લેક પ્રમાણ છે. એટલે કે તે લેકના જેટલું જ મોટું છે. તેનું કારણ એ છે કે તે કાકાશમાં સર્વત્ર વ્યાપ્ત છે–લેકાકાશને કઈ પણ प्रमेयो नथी न्यो । द्रव्यर्नु सस्तित्व नाय. (कालओ न कयावि न आमी, न कयाइ नत्थि जाब णिच्चे) नी मपेक्षा भूतमा ५५ સમયે તે (ધર્માસ્તિકાય) ન હતું એવું બન્યું નથી, વર્તમાન કાળમાં કઈ પણ સમયે તે નથી એવું બનતું નથી અને ભવિષ્યકાળમાં કઈ પણ સમયે તેનું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨