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२०१६
भगवतीमत्रे टीका-"कइ णं भते अस्थिकाया पण्णत्ता" कति खलु हे भदन्त ! अस्तिकायाः प्रज्ञप्ताः ? कथिताः अस्तिकायानां किं स्वरूपम् कीयती च संख्येति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । " गोयमा” हे गौतम ! " पंच अत्यिकाया पण्णत्ता" पञ्च अस्तिकायाः प्रज्ञप्ताः अस्तिकायशब्दास्याऽर्थस्त्वयम् । अस्तिकाय इत्यत्र अस्तिशब्दस्य प्रदेशोऽर्थः कायशब्दस्य च राशि समुदायः तथा च है । (खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते ) क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय लोक प्रमाण मात्र है (कालओ ण कयाइ न आसी जाव णिच्चे ) काल की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय भूतकाल में कभी नहीं था ऐसा नहीं है यावत् यह नित्य है। (भावओ वण्णमंते गंधरसफासमंते ) भाव की अपेक्षा पुद्गलास्तियाय वर्णवाला है, गंधवाला है, रसवाला है, स्पर्शवाला है, (गुणओ गहणगुणे) गुण की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय ग्रहणगुण वाला है । सू० १ ।। ___टीकार्थ-(कह णं भंते ! अस्थिकाया पण्णत्ता) हे भदन्त ! अस्तिकाय कितने कहे गये हैं ? अर्थात्-अस्तिकायों का क्या स्वरूप है और उनकी संख्या कितनी है ऐसा इस प्रश्न का भाव है। भगवान् इसका उत्तर देते हुए कहते हैं ( गोयमा) हे गौतम ! (पंच अस्थिकाया पण्णत्ता) पांच अस्तिकाय कहे गये है। अस्तिकाय शब्द का अर्थ इस प्रकार से है-(अस्तिकाय ) में दो शब्द हैं-एक (अस्ति) और दूसरा (काय) अस्ति शब्दका अर्थ प्रदेश है और काय शब्द का अर्थ राशि है, इस अपेक्षा रातिाय सनत द्रव्य३५ छ, (खेत्तओ लोयप्पमाणमेत ) नी अपेक्षा पुसास्तिय सोपरिभित (Aधमा ) छे ( काल ओ ण कयाइ आसी जाव णिच्चे ) अनी अपेक्षा पुरसस्तियतुं मस्तित्व भूतापमान હત એવું બન્યું નથી, ત્યાંથી લઈને તે નિત્ય છે, ત્યાં સુધીનું સમસ્ત કથન पास्ताय भुम सभ. (भावओ वण्णमंते गंधरसफासमंते) मावनी अपेक्षा पदसास्तिय पण, आध, २स मने २५शथी युक्त छ. ( गुणओ गहणगुणे) अशुनी अपेक्षा पुस्तिय अगुवाणु छ. ॥ २१ ॥
टी--" कइणं भंते ! अस्थिकाया पण्णता" महन्त ! मस्तिय કેટલા છે? પ્રશ્નનો ભાવાર્થ એ છે કે અસ્તિકાનું કેવું સ્વરૂપ છે અને તેમની सध्या टी छ ?
गौतम स्वामीना प्रभावाम मापता महावीर प्रभु छ गो. यमा" है गौतम! "पंच अस्थिकाया पण्णत्ता” मस्तिय पाय i. anસ્તિકાય ” શબ્દને અર્થ આ પ્રમાણે છે-અસ્તિ ૪ કાય= અસ્તિકાય. અસ્તિ એટલે પ્રદેશ અને કાય એટલે રાશિ. પ્રદેશની જે રેશિ (સમુદાય) હેય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨