________________
प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ १० १० सू०१ अस्तिकायस्वरूपनिरूपणम् १०१५ कतिवर्णः कतिगन्धः कतिरसः कतिस्पर्शः? गौतम ! पञ्चवर्णः पञ्चरसः द्विगन्धः अष्ट स्पर्शः रूपी अजीवः शाश्वतोऽवस्थितो लोकद्रव्यम् स समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः तद् यथा द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतो गुणतः, द्रव्यतः पुद्गलास्तिकायोऽनन्तानि द्रव्याणि क्षेत्रतो लोकप्रमाणमात्रः कालतो न कदाचिन्नासीत् यावन्नित्य भावतो वर्णवान् गन्धरसस्पर्शवान् गुणतोग्रहणगुणः ॥ सू० १ ॥ वास्तिकाय वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से रहित है । ( गुणओ उवओगगुणे ) गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय उपयोग गुणवाला है । (पोग्गलस्थिकाए णं भंते ! कइवण्णे, कइगंधे, कइरसे, कइफासे ) हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय कितने वर्णवाला है ? कितने गंधवाला है ? कितने रसवाला है ? कितने स्पर्शवाला है ? ( गोयमा ) हे गौतम ! (पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे ख्वी अजीवे, सासए अवट्ठिए लोगदव्वे ) पुद्गलास्तिकाय पांच वर्णवाला है, पांच रसवाला है, दो गंधवाला है आठ स्पर्शवाला है रूपी है अजीव है शाश्वत है अवस्थित है और लोकद्रव्य है । ( से समासओ पंचविहे पण्णत्ते ) वह पुद्गलास्तिकाय संक्षेपसे पांच प्रकार का कहा गया है । (तं जहा ) जैसे ( दव्वओ, खेत्तओ, कालो, भावओ, गुणओ) द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय, क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय, काल की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय, भाव की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय, गुण की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय ( दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दवाई) द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय अनंत द्रव्यरूप छ. “ गुणओ उवओगगुणे" गुनी अपेक्षा स्तिय उपयोग शुशुपाणु, छे.
___ "पोग्गलत्थिकाए भंते! कइ वण्णे, कई गंधे, कइ रसे कइ फासे !" હે ભદન્ત ! પુલાસ્તિકાય કેટલા વર્ણ વાળું છે, કેટલા ગંધવાળું છે? કેટલા २४ पाणु छ ? भने । २५ वाणु छ ? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (पंचवण्णे, पंच रसे, दुगंधे, अट्ठफासे, रूबे अजीवे सासए अवदिए लोगदव्वे ) पुर. લાસ્તિકાય પાંચ વર્ણવાળું પાંચ રસવાળું, બે ગંધવાળું, આઠ સ્પર્શવાળું, રૂપી, २५७१, शाश्वत, मपस्थित, मन सोद्रव्य छे. ( से समासओ पंचविहे पण्णते) ते पुस्तियन सक्षितमा पांय प्रा२ छे. ( तंजहा ) ४२ मा प्रभार छ-( दव्वओ खेत्तओ, कालओ, भाव ओ, गुणओ) (१) द्रव्यनी मयेक्षा पुरवास्तिय, (२) क्षेत्रनी अपेक्षा पुरसस्तिय, (3) अपनी अपेક્ષાએ પુલાસ્તિકાય, (૪) ભાવની અપેક્ષાએ પુલાસ્તિકાય, અને (૫) ગુણની अपेक्षा Yautasti. ( दव्व ओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दवाई) द्रव्यनी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨