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________________ भगवतीसूत्रे ___ भगवानाह-' णो इणडे' इत्यादि । ' णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः, तत्किमित्याह ‘से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ' तत् खलु क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छति स्वल्पलात्तस्य 'सेवं भंते सेवं भंते त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! हे भगवन् देवानुप्रियेण यत् कथितं तत्सर्व सत्यमेवेति ॥मू०७॥ इति श्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य-श्रीघासीलालबतिविरचितायां श्रीभगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिका-व्याख्यायां प्रथम ___ शतकस्य षष्ठोद्देशकः समाप्तः ॥१-६॥ उत्तर-(णो इणटे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ-समर्थ-ठीक-नहीं है, क्यों कि (से ण) वह (विप्पामेव विद्धंसमागच्छइ) बहुत ही शीघ्र नष्ट हो जाता है। कारण यह है कि वह स्वल्प होता है। (सेवं भंते, सेवं भंते त्ति) हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है। हे भदन्त ! वह ऐसा ही है । इस प्रकार कह कर वे गौतमस्वामी प्रभु की वंदना और उन्हें नमस्कार कर अपने स्थान पर बैठ गये ॥सु०७॥ जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्य श्रीघासीलालजी महाराजकृत भगवतीसूत्रकी प्रमेयचगिका व्याख्याके प्रथम शतकका छट्ठा उद्देशक समाप्त॥१-६॥ मे मनतुं नथी. ४।२९५ ( से णं) ते सूक्ष्म मायना । (खिप्पामेव विद्धसमागच्छइ,) ४४म हीथी नRA पामे छ. १२६१ ते सूक्ष्म डाय छ ( सेव भंते ! सेव भंते!) 3 ममपन् ! माघे ४ प्रमाणे २५ मधुय छे. હે પ્રભે! આપનું કહેવું સાચું જ છે આ પ્રમાણે કહીને મહાવીરને વંદણ અને નમસ્કાર કરીને ગૌતમસ્વામી પિતાને સ્થાને ગયા. સૂ-૭ ઇતિશ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ભગવતીસૂત્રની પ્રિયદર્શિની વ્યાખ્યાના પહેલા શતકને છઠે ઉદ્દેશક સમાપ્ત ૧-૬ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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