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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २७० १०१ चमरेन्द्रस्य सुधसभादिनिरूपणम् ९९१ भूमिभागे पन्नत्ते ” तस्य खलु तिगिच्छ कूटस्य उपपातपर्वतस्य उपरि बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तः तत्र बहुसमरमणीय अत्यंतसमोरमणीयः मनोहरश्चे त्यर्थः " वव्णओ" वर्णकः ताशात्यन्त - समरमणीयस्य भूमिभागस्य वर्णनं कर्तव्यम् तदित्थम् " से जहा - नामए आलिंगपुक्खरे इवा" तद् यथा नाम आलिंगपुष्करमिति- वा. आलिंगपुष्कर मुरजमुखमुखम्
" मुइंग पुक्खरे इवा" मृदंगपुष्करमिति वा "सरतले इवा" सरस्तलमिति वा " करतले इवा" करतलमिति वा "आयसमंडले इवा " आदर्शमण्डलमिति वा. "चंदमंडले इवा " चन्द्रमण्डलमिति वा इत्यादि पूर्वोक्त विशेषणवत् समतल इत्यर्थः " तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स" तस्य रुल बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य. " बहुमज्झदेसभागे एस्थ णं महं एगे पासाय वडिंसये पनत्ते " बहुमध्यदेशभागे अत्र खलु महानेकः प्रासादावतंसकः प्रज्ञप्तः डस्त उपायपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागेपण्णत्ते) इस ति. गिच्छकूट नामक उत्पात पर्वत का जो ऊपर का भूमिभाग है वह बिलकुल समतल है-ऊँचा नीचा-अथवा-ऊबड़ खाबड़-नहीं है अतःयह बड़ा ही सुन्दर है। (वण्णओ) इस बहुसमरमणीयभूमीभाग का वर्णन कर लेना चाहिये जो इस प्रकार से है-(से जहानामए अलिंगपुक्खरेइ वा) वह भूमिभाग मुरजमुख के समान है। (मुयंगपुक्खरेइ वा) मृदंग मुख के जैसा है। (सरतलेइ वा) तालाब के तलभाग के सदृश है। (करतलेइ वा) हाथों के तलिया के अनुरूप है। (आयंसमंउलेइ वा) दपंण मंडल के तुल्य है । (चंदमंडलेह वा) चन्द्रमण्डल के जैसा है। इन सब विशेषणों से यही प्रकट किया गया है कि वह भूमिभाग बिलकुल समतल वाला है। (तस्स णं बहसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहमज्झदेसभागे एत्थ णं महं एगं पासायडिसए पन्नत्ते ) बहुसमरमणीय उस " तस्स णं तिगिच्छकूडस्स उपायपब्बयस उनि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते તે તિગિચ્છકૂટ નામના ઉત્પાત પર્વતનો ઉપરનો ભાગ તદ્દન સમતલ છે. તે ભાગ ઉંચો નીચે અથવા ખાડા ટેકરા વાળે નથી તે સઘળા સુંદર લાગે છે. (वण्णओ) ते समतता रमणीय भागनुं वन नीये प्रभारी छ (से जहा नामए आलिंगपुक्खरेइ वा ) त भूमिला भु२०० भुम ना वा छे, ( मुबंगपुक्खरेइ वा ) भृभुमना छ, ( सरतलेइवा ) सरोवरना तAHIL समान छ, ( करतलेइवा ) ४२तर समान छ, ( आयसमडलेइवा) सरीसानी सपाटी समान छे, (चदमडलेइ वा ) भने यन्द्रभस समान छ. मा सघात विशेપણે દ્વારા એ વાત પ્રકટ કરવામાં આવી છે કે તે ભૂમિભાગ તદ્દન સમતલ छ. ( तस्स ण बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे एत्थ ण मह एग पासायवडिसए पन्नत्ते) ते पसभ रमणीय भूमिमानी पराम२ पथ्या
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨