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भगवतीसूत्रे तिगिच्छकूटउपरितलपरिक्षेपसमा परिक्षेपेण “तीसेण पउमवरवेइयाए" तस्या खलु पद्मवरवेदिकायाः “इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते" अयमेतद्रूपो वर्णक व्यासः प्रज्ञप्तः वर्णकव्यासो वर्गकविस्तार इत्यर्थः “वहरामया नेमा" वज्रमयी नेमा इत्यादि, नेमाः स्तंभानां मूलपादाः 'अस्याः सविस्तारतो वर्णनं राजप्रश्नीय सूत्रतोऽवसेयम् । वनखण्डवर्णकस्त्वेवम् “ से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई च चकवालविक्खंभेणं " स खलु वनखण्डको देशोने द्वे योजने चक्रवालविष्कंभेण गोलाकारेण "पउमवरवेइया-परिक्खेवसमे परिक्खेवेण" पद्म वरवेदिकापरिक्षेपसमः परिक्षेपेण “ किण्हे किण्होभासे " कृष्णः कृष्णावभासः इत्यादि । " तस्स णं तिगिच्छकूडस्स उपायपचयस्स उपि बहुसमरमणिज्जे( तिगिच्छकूडउवरितलपरिक्खेवसमा परिक्खेवेणं) इस पद्मवरवेदिका का परिक्षेप तिगिच्छ कूट उत्पात पर्वत के उपरिभाग का जितना परिक्षेप है उतना है। (तीसेणं पउमवरवेझ्याए इमेयाख्वे वण्णावासे पण्णत्ते ) इस पद्मवर वेदिका के और भी वर्णन का विस्तार इस प्रकार से है (वहरामया नेमा ) इत्यादि इस पद्मवर वेदिका के नेम स्तंभों के मूलपाद वज्र के बने हुए हैं । इसका विस्तृत वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र में किया गया है सो वहां से जान लेना चाहिये। __ वनखण्ड का वर्णन इस प्रकार से है ( से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्वालविक्खंभेणं ) इस वनखण्ड का घेराव कुछ कम दो योजन का है । (पउमवरवेड्या परिक्खेवसमे परिक्खेवेणं) इसका परिक्षेप पद्मवरवेदिका के परिक्षेप के जितना है । (किण्हे किण्होवभासे) यह कृष्ण और कृष्णकान्तिवाला है । इत्यादि । (तस्स णं तिगिच्छकनी मानसी छ. " तिगिच्छकूडवरितलपरिक्खेवसमा परिक्खेत्रेणं " ते ५५१२ વેદિકાને પરિક્ષેપ (પરિઘ ) તિચ્છિકૂટ પર્વતના ઉપરના ભાગ જેટલે જ छ. ' तीसेणं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते" ते ५५२ वहिछन मधिल पणन मा प्रभाव छ-" वइरामया नेमा" ते ५५१२वहिनी સ્તંભના મૂળભાગ વજને બનેલું છે. તેનું વિસ્તૃત વર્ણન ( રાજકશ્રીય સૂત્ર भi ) ४यु छ, तो त्यांची पायी ये
वनमर्नु qणुन L प्रमाणे -" से गं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चकवालविक्खंभेणं" नमन। धेरावो मे योगन ४२i स माछ। छ. "पउमवरवेइया परिक्खेवसमे परिक्खेवेणं" तेना परिक्ष५ ५५१२वहिन परिक्ष५ १. "किण्हे किण्होवभासे' ते शुश्याम छ, भने श्याम तिथी युत .
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨