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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०८ सू०१ चमरेन्द्रस्य सुधर्मासमादिनिरूपणम् ९८९ किरणयुक्त इत्यर्थः “ सइज्जो स" सोयोतकः अन्यवस्तु प्रकाशकः 'पासाइए' प्रासादीयः प्रसन्नताजनकलात् " दंसणिज्जे" दर्शनीयः 'अभिरुवे' अभिरूपकः अतिरमणीयः " पडिरूवे " प्रतिरूपः सुन्दराकृतिकः " सेणं एगाए पउमवर बेहयाए" स खलु एकया पनवरवेदिकया युक्तः "एगेण वणसंडेण य" एकेन वन खण्ड केन च ' सवओ समंता संपरिक्खित्ते ' सर्वतः समन्तात् परिक्षिप्तः परिवेष्टित इत्यर्थः " पउमवरवेइयाए वणसंडस्स य वण्णओ" पद्मवरवेदिकायाः वनखण्डकस्य च वर्णकः तत्र वेदिकावर्णकस्तु इत्थम् तथाहि-" सा णं पउमवरवेइया अद्धं जोयणं उड्डू उच्चत्तेण" सा खलु पद्मवरवेदिका अर्धयोजनम् ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन "पंचधणुसयाई विक्खंभेणं " पञ्चधनुः शतानि विष्कंभेण “ सबरय. णामइ , सर्व रत्नमयी “ तिगिच्छकूड उवरितलपरिक्खेवसमा परिक्खेवेणं " का प्रकाशक होनेसे यह सोद्योत उद्योत से युक्त है । प्रसन्नताका जनक होने से यह प्रासादीय है । देखने योग्य होने से दर्शनीय, अतिरमणीय होने से अभिरूप और सुन्दराकृतियुक्त होने से प्रतिरूप है । ( से गं एगाए पउमवरवेड्याए ) यह उत्पात पर्वत एक पद्मवर वेदिका से (एगेण वणसंडेण ) और एक वनखंड से (सव्व समंता संपरिक्वित्ते सब तरफ अच्छी तरह से परिवेष्टित । (पउमवरवेड्याए वणसंडस्स यधण्णओ) पद्मवरवेदिका और वनांड का वर्णन यहां जानना चाहिये । पद्मवर वेदिका का वर्णन इस प्रकार से है-सा णं पउमवरवेहया अखं जोपणं उड्डू, उच्चत्तेणं ) इस पद्मवर वेदिका की ऊचाई आधे योजन की है । ( पंचधणुसयाई विखंभेणे ) विष्कम इस को पांच सौ ५०० धनुष का है । ( सम्वरयगामई ) यह पूरी रत्नों की बनी हुई है। હોવાથી સોદ્યોત-પ્રકાશથી યુક્ત છે. તે પ્રસન્નતાને જનક હવાથી પ્રસાદીય છે. તે દેખવા યોગ્ય હોવાથી દર્શનીય છે, અતિશય સુંદર હવાથી અભિરૂપ છે અને સુંદર આકૃતિ વાળે હેવાથી પ્રતિરૂપ છે. से णं एगाए पउमवरवेइयाए " ते त्यात ५'त मे ५१२ वहसाथी भने “एगेण वणसंडेण" मे नमश्री “ सब्बओ समंता संपरि क्खित्ते " मधी यानुस धेशयत छ. "पउमवरवेइयाए वणसंडस्स य वण्णओ" અહીં પદ્મવર વેદિકાનું તથા વનખંડનું વર્ણન કરવું જોઈએ. પદ્મવરદિકાનું वर्णन मा प्रमाणे छ- “सा णं पउमवरवेइया अद्धं जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं" । ५५१२ वहिनी या मा योनी छे, “पंच धणुसयाई विक्खंभेणे" ते विन ( विस्तार ) ५०० धनुषना छे. “ सब्बरयणामई " ते पूरे पूरी २ने. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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