________________ भगवतीसूत्रे भदन्तः तदेवं भदन्त! इति यावद्विहरति, हे भदन्त ! नारकाधारभ्य वैमानिकपर्यन्तस्य स्थितिस्थानादिकविषये यदुक्तम् तत्सर्वमेवमेव / ' सेवं भंते सेवं भंते' इति द्विः कथनं भगवत आदरातिशयमूचनाय, इत्युक्त्वा वन्दित्वा नमस्कृत्य संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति ॥सू०११॥ इति श्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य-श्रीघासीलालप्रतिविर• चितायों श्रीभगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकान्याख्यायां प्रथम शतकस्य पञ्चमोद्देशकः समाप्तः // 1-5 // ठिटाणा पणत्ता" इत्यादि / यही बात “जाव वेमाणिया” इस सूत्रसे कही गई है। अब उद्देशकका उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि'सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ' हे भदन्त! नारक आदिसे लेकर वैमानिकपर्यन्त जीवोंके जो आपने स्थितिस्थान आदिके विषयमें कहा है वह सब ऐसा ही है / हे भदन्त ! ऐसा ही है। यहां जो दो बार ऐसा कहा गया है वह भगवान् के प्रति गौतमस्वामीने अपना आदरातिशय व्यक्त किया है इस बातको प्रकट करनेके लिये कहा गया है। ऐसा कहकर गौतमस्वामी उन्हें वंदना करके, नमस्कार करके संयम और तपसे आत्माको भावित करते हुए विचरने लगे। सू० 11 // जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर श्रीघासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्रकी प्रियदर्शिनी व्याख्याके प्रथमशतकका पांचमा उद्देशक समाप्त॥१-५॥ त्यादि से पात जाव वेमाणिया" से सूत्र भा२५त तापी छ. शनी पडा२ 42di सूत्र२ 4 छ, “सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विरहह" पून्य ! नाथी 13 ४ीन वैमानि। सुधीनवान स्थिति સ્થાનાદિના વિષયમાં આપે કહ્યા પ્રમાણે જ તમામ હકીકત છે અને તે હે पुन्य ! 42152 छ. तथा मापनुं 4 यायु छ. २मडी “सेव भंते !"न। બે વાર ઉલ્લેખ કરીને મહાવીરસ્વામીમાં ગૌતમે પિતાને અતિશય આદર તથા અતિશય શ્રદ્ધા પ્રકટ કરેલ છે. આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણા અનેનમસ્કાર કરીને, સંયમ અને તપથી આત્માને ભવિત કરતા ગૌતમસ્વામી વિચારવા લાગ્યા. || જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ભગવતીસૂત્રની પ્રિયદર્શિની વ્યાખ્યાના પહેલા શતકને પાંચમે ઉદ્દેશક સમાપ્ત ૧-પા // श्री भगवतीसूत्रे प्रथमशतकस्य प्रथमोदेशतः पश्चोदेशात्मकः प्रथमोभागः समाप्तः॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: 1