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________________ ७६८ भगवतीसूत्रे लोभोवउत्ते य' क्रोधोपयुक्तश्च मानोपयुक्तच मायोपयुक्तश्च लोभोपयुक्तच १, ' कोहोबत्ता यमाणोवउत्ता य मायोवउत्ता य लोभोवउत्ता य' क्रोधोपयुक्ताश्च मानोपयुक्ताश्च मायोपयुक्ताश्च लोभोपयुक्ताश्च २, ' अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य' अथवा क्रोधोपयुक्तश्च मानोपयुक्तश्च ३, 'अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ता य, अथवा क्रोधोपयुक्त मानोपयुक्ताश्च ४ । ' एवं असीई भङ्गा यव्त्रा' एवमशीतिर्भङ्गा ज्ञातव्याः, ' एवं जाव संखेज्ज समयाहिया ठिई ' एवं यावत् संख्येयसमयाधिका स्थितिः । ' एवम् ' अनेन प्रकारेण यावत् द्विसमयादारभ्य संख्यातसमयाधिकास्थितिः = संख्यातसमयाधिकस्थितिपर्यन्तं प्रत्येकमशीतिर्भङ्गा विज्ञेया इति भावः । देते हुए कहते हैं कि - (गोयमा) हे गौतम ! (कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य, मायोवउत्ते य लोभोवउत्ते य) कोई एक क्रोधोपयुक्त होता है, कोई एक मानोपयुक्त होता है. कोई एक मायोपयुक्त होता है। कोई एक लोभोपयुक्त होता है । (कोहोबत्ता य, माणोवउत्ता य, मायोवउत्ता य । लोभोत्ता य) कितनेक क्रोधोपयुक्त होते हैं, कितनेक मानोपयुक्त होते हैं, कितनेक मायोपयुक्त होते हैं, कितनेक लोभोपयुक्त होते हैं। ( अहवा कोहो उत्तेय, मागोवउसे य) अथवा कोई एक क्रोधोपयुक्त होता है, कोई एक मानोपयुक्त होता है। (अहवा -कोहोवउत्तेय, माणोवउत्ता य) अथवा कोई क्रोधोपयुक्त होता है और कितनेक मानोपयुक्त होते हैं। ( एवं असोई भंगा नेयव्वा) इस प्रकार ८० भंग जानना चाहिये । ( एवं जाव संखेज्जसमयाहिया ठिई ) इस तरह दो समय से लेकर संख्यात समयाधिक स्थिति पर्यन्त प्रत्येक के अस्सी भंग जानना चाहिये, तथा महावीर प्रभु या प्रमाणे आये छे - ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( कोहोवउत्ते य माणो उत्तेय मायोवउत्ते य लोभोव उत्त य) अर्थ मे डोघोपयुक्त होय छे, अर्ध मेड માનાપયુકત હોય છે, કોઈ એક માયાપયુકત હોય છે, અને કોઈ એક લોભાપયુકત होय छे. (कोहो उत्ता यमाणोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ता य) धा अधोपयुत હોય છે, ઘણા માનાપયુકત હાય છે, ઘણા માયેાપયુકત હાય છે અને ધણા बालोपयुक्त पशु होय छे. ( अहवा कोहोवउत्त य माणोवउत्त य) अथवा अधो ोधयुक्त होय छे, अने अध मे भानोपयुक्त होय छे. ( अहवा कोहो उत्त य माणाव उत्ता ૬) અથવા કાઈં એક ક્રોધયુકત હોય છે અને ઘણા માનાપયુકત હાય છે. ( एवं असीई भंगा नेयव्त्रा) मा प्रमाणे ८० लांगा जने छे सेभ समभवु ( एवं जाव संखेज्जस नयाहियाए ठिई) आ रीते मे समयथी श३ उरीने सध्यात सभयाधिः स्थिति पर्यन्त प्रत्येउना ८० लांगा समन्न्वा तथा ( असंखेज्जसम - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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