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भगवतीसूत्रे जीवविषये आलापकत्रयं प्रदर्य साम्प्रतमवधिविषयमाह-'जहा छउमत्थो' इत्यादि । 'जहा छउमत्थो तहा आहोहिओ वि तहा परमाहोहिओ वि' यथा छद्मस्थस्तथा आधोवधिकोपि परमाधोवधिकोपि विज्ञेयः। 'तिन्नि तिनि आलावगा भाणियव्या' त्रयस्त्रय आलापका भणितव्याः, आधोवधिक विषये परमाधोवधिकविषये च प्रत्येकं भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालविषयास्त्रयस्त्रय आलापका वाच्याः। तत्र आधाऽवधिकः अधा=परमावधेन्यूनो योऽवधिः स अधोऽवधिकः तेन व्यवहरतीति आधोवधिकः परिमितक्षेत्रविषयकावधिज्ञानसंपन्नः । तथा परमाधोऽवधिका-परम:सूत्र द्वारा दिया गया समझ लेना चाहिये जैसा कि पहले बतला दिया गया है।
इस प्रकार छद्मस्थ जीव के विषय में तीन काल संबंधी तीन आलाकों को दिखलाकर अब सूत्रकार अवधिज्ञान के विषय में कहते हैं कि (जहा छउमत्थो तहा आहोहिओ वि )जैसे छद्मस्थ का कथन किया है वैसा ही आधोवधिक का भी (तहा परमाहोहिओ वि) तथा परमाधोवधिक का भी कथन जानना चाहिये । (तिण्णि तिगि आलावगा भाणियन्वा) और इनके तीन२ आलापक कहना चाहिये। तात्पर्य यह है कि आधोवधिक के विषय में और परमाधोवधिक के विषय में प्रत्येक भूत, भविष्यत् और वर्तमानकाल को लेकर तीन तीन आलापक होते हैं। परमाधोवधिक से न्यून जो अवधि है वह अधोऽवधिक है। इस अधोऽ. वधिकसे जो व्यवहार करता है अर्थात् रूपी द्रव्यको जानता है वह आधोघधिक है। परिमित क्षेत्रविषयक अवधिज्ञानसे युक्त जो है वह आधोवउत्तर “गोयमा ! णो इणद्वे समढे" सूत्र ॥२॥ भावामा माये! छे तेना અર્થ આગળ કહ્યા પ્રમાણે સમજે.
આ પ્રમાણે છવસ્થ જીવના વિષયમાં ત્રણ કાળ સંબંધી ત્રણ આલાપકનું ४थन ४ीने वे सूत्रा२ २३वधिज्ञानना विषयमा नाय प्रमाणे ४ छ-(जहा छउमत्थो तहा आहोहिओ वि) २ छमस्थनुं थन ज्यु छ तेवू थन अवधिज्ञानीनुं तथा (तहा परमाहोहिओ वि) ५२माघावधिनुं ५७४ सभा.(तिण्णि तिणि आलावगा भाणियव्वा) ते ४२४ अवधिज्ञानाना १ ३ मासा५४४i જોઈએ. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અવધિજ્ઞાનીના વિષયમાં અને પરમઅવધિજ્ઞાનીના વિષયમાં પ્રત્યેકના ભૂત, ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળ સંબંધી ત્રણ ત્રણ આલાપક થાય छ ५२म अवधिज्ञानथी सारे सवधिज्ञान छेतेनु नाम " अधोऽवधिक" छे. આ અધેવધિકથી જે વ્યવહાર કરે છે એટલે કે રૂપી દ્રવ્યને જાણે છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧