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________________ प्रयमेचन्द्रिकाटीका श० १ उ० ४ सू० ४ पुद्गलविचारः ७०५ न्यरूपेण पुद्गलविशेषस्य परमाणोरेवात्र ग्रहणं, स्कन्धादिरूपपुद्गलपरिणामादेरिह प्रकरणे एवोत्तरसूत्रे चिन्तयितव्यत्वात् , "ती" अतीते, अतीतत्वं भूतकालिकमिति, "कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे" इति द्वितीया, अतः सर्वस्मिन्नतीतेकाले इत्यर्थः, एवं वर्तमानानागतेपि बोध्यम् , 'अणंत' अनन्ते, अथवा नास्ति अन्तः ध्वंसात्मको यस्य तत् अनन्तं, तस्मिन् , एतावता भविष्यकालस्य सत्ता प्रदर्शिता । 'सासयं' शाश्वते सदैव विद्यमाने न हि कदाचिदप्ययं लोको भूतभविष्यद्वर्तमानकालत्रयेण रिक्तोऽभूत् अतीतकाले न कदाचिदपि पुद्गलशून्यो लोकोऽभूत् , समयमिति समयेकाले भुवीति' करने वाला यह पुद्गल शब्द है । परन्तु यहां पुद्गल शब्द से रूप, रस, गंध और स्पर्श वाला केवल परमाणुरूप पुद्गलविशेष ही ग्रहण किया गया है। स्कन्धादिरूप पुद्गल नहीं, क्योंकि उसका विचार इसी प्रकरण में आगेके सूत्र में किया गया है। "तीय" शब्दका अर्थ अतीत भूतकाल है। "तीय"में जो यह द्वितीया विभक्ति है वह "कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे" इस नियमसे है अतः सब अतीतकालमें ऐसा अर्थ जानना चाहिये । इसी तरहसे वर्तमानकाल और अनागतकालमें भी समझना चाहिये। "अणतं" इस पद में भी सप्तमी विभक्ति का अर्थ जानना चाहिये । अनन्तजिसका ध्वंसात्मक विनाश नहीं है वह अनन्त, अथवा अनादि होने के कारण जो माप से रहित है वह अनन्त है। " सासयं' सदैव विद्यमानहमेशा रहनेवाला-ये सब विशेषण भूतकाल के हैं । भूतकाल कैसा है ? तो कहा गया है कि अनन्त और सदा रहने वाला भूतकाल हैं। अभी तक ऐसा नहीं हुआ कि लोक कभी भूत, भविष्यत् और वर्तमान, પુદ્ગલ શબ્દ વડે રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શવાળા પરમાણુ રૂપ પુગલ વિશેષ જ ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે, સ્કન્ધાદિરૂપ પુદ્ગલ ગ્રહણ કરાયા નથી. કારણ કે તેને વિચાર આ પ્રકરણમાં જ હવે પછીનાં સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યો છે. "तीय" सटसे मतीत-भूत "तीय'मा रे मा विमतिनी प्रयोग थयो छ ते “कालावनोरत्यन्तसंयोगे' या नियमथी।यो छ तेथी “समस्त मताम" એ પ્રમાણે અર્થ સમજવો. વર્તમાનકાળમાં અને ભવિષ્યકાળમાં પણ એજ પ્રમાણે सम "अगंत" ॥ ५६मा पाए सातभी. विमतिना मथ समन्व. “अनन्तं" એટલે જેને વંશાત્મક વિનાશ થતો નથી અથવા અનાદિ હોવાને કારણે જે भापथी २डित छ तेन मन ४ छ. “ सासयं" सटसे सह ४७ रनाई એ બધાં ભૂતકાળનાં વિશેષણ છે ભૂતકાળ કેવો? તે કહ્યું છે કે અનંત અને શાશ્વત ભૂતકાળ હજી સુધી કદી પણ એવું બન્યું નથી કે લોક કી પણ ભૂત, ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળથી રહિત હોય, અથવા પુદગલેથી રહિત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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