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________________ भगवतीसरे हन्त गौतम ! तदेवोच्चारयितव्यम् , एवं स्कन्धेनापि त्रय आलापकाः, एवं जीवेनापि त्रय आलापका भणितव्याः ॥सू०४॥ ___टीका-'एस णं भंते ' एषः खलु भदन्त ! 'पोग्गले' पुद्गलः वर्णगन्धरस स्पर्शविशिष्टः परमाणुः यद्यपि पुद्गल इति सामान्याभिधायी शब्दस्तथापि सामाभविष्यत् कालमें रहेगा ऐसा कहा जा सकता है क्या ? भगवान् कहते हैं"हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेयवं" हां गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है कि यह पुद्गल अनन्त एवं शाश्वत ऐसे भविष्यकालमें रहेगा। और “ एवं खंधेणवि तिणि आलावगा" इसी प्रकार स्कंध के साथ भी भूत भविष्य और वर्तमान काल संबंधी तीन आलापक कहना चाहिये । इस तरह सूक्ष्म और स्थूल पुद्गल संबंधी तीन तीन आलापकों को दिखाकर अब पत्रकार जीव के साथ तीन आलापकों का कथन निमित्त कहते हैं कि “ एवं जीवेण वि तिणि आलावगा भाणियव्वा" जिस प्रकार से परमाणुरूप सूक्ष्म पुद्गल के साथ तीन आलापक किये उसी प्रकार जीवके साथ भी नीन आलापक करना चाहिये ॥ मू० ४॥ टीकार्थ-(एस णं भंते! पोग्गले तीत मणंत सासयं भुवीति वत्तवं सिया) यहां यह प्रश्न इस प्रकार से है-कि हे भगवन ! यह पुद्गल अनंत शाश्वत बीते हुए काल में था क्या ! रूप रस गंध और स्पर्श इन से युक्त जो होता है उसका नाम पुदल है। यहां मूत्र में पुदलत्वरूप सामान्य का कथन હે ભદંત આ પુગલ અનંત અને શાશ્વત ભવિષ્યકાળમાં રહેશે, એવું કહી शय छ ? भगवान ४ छ , हंता गोयमा त चेव उच्चारेयव्वं गौतम એવું કહી શકાય છે કે આ પુદ્ગલ અનંત અને શાશ્વત એવા ભવિષ્યકાળમાં १७५ २. अने एव (खंधेग वि तिणि आलावगा) सेवाशते ४ धनी साथ પણ ભૂત ભવિષ્ય અને વર્તમાનકાળ સબંધી ત્રણ આલાપક કહેવા જોઈએ એવી જ રીતે સૂક્ષમ અને સ્કૂલ સંબંધી ત્રણ ત્રણ આલાપકોને બતાવીને હવે સૂત્ર ४१२वनी साथे त्राणु मासापोर्नु ४थन ४२१। भाट ४ छ -“ एवं जीवे ण वि तिणि आलावा भ.गियव्या" वा रीते ५२म।।४३५ सूक्ष्मयुगसनी સાથે ત્રણ આલાપક કીધા તે જ રીતે જીવની સાથે પણ ત્રણ આલાપક કરવા જોઈએ. 2014-(एसणं भंते ! पोग्गले तीतमणंत सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया) 3 ભગવાન ! આ પુદ્ગલ અનંત શાશ્વત અતીતકાળમાં હતું? રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શથી યુક્ત જે હોય છે. તેનું નામ પુદ્ગલ છે. અહિં સૂત્રમાં પુદ્ગલવરૂપ સામાન્ય ધર્મનું કથન કરનાર પુદ્ગલ શબ્દ વપરાય છે. પણ અહીં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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