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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१ उ० ४ सू० ३ कर्मावेदने मोशाभावकथनम् ७०१ तया औपक्रमिक्या वेदनया वेदयिष्यति, तथा 'जहाकम्म' यथा कर्म-वद्धकर्मणोऽनतिक्रमणेन 'जहा निरगगं' यथानिकरणम् , निकरणानां नियतानां देशकालादिकरणानां विपरिणतिहेतूनाम् अनतिक्रमणेन 'जहा जहा तं भगवया दिटुं' यथा यथा तत् कर्म भगवता जिनेन दृष्टम् , 'तहा तहा तं विप्परिणमिस्स इ-ति' तथा तथा तेन तेनैव प्रकारेण तत् कर्म विपरिणस्यति परिणाम प्राप्स्यति, इति शब्दः वाक्यार्थ परिसमाप्तौ । इदानीं प्रकरणार्थमुपसंहरन्नाह-से तेण टेणं' इत्यादि। ' से तेणडेणं ' तत् तेनार्थेन ‘गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइयस्स वा. मोक्खो' नैरयिकस्य वा० मोक्षः, अनेन कारणेन हे गौतम ! कथयामि यत् नैरयिकस्य तिर्यग्योनिकस्य मनुष्यस्य देवस्य वा यत् कृतं कर्म तस्य अवेदयित्वा माक्षो नास्तीति भावः ॥ ५० ॥३॥ कम्मं, अहानिगरणं जहा जहा तं भगवया दिटुं तहा तहा तं विप्परिणमिस्सइ त्ति) यथाकर्म-बंधकिये हुए कर्म के अनुसार एवं निकरणों के अनुसार, जैसा जैसा वह कर्म भगवान् ने देखा है, उसी उसी तरह से वह परिणमेगा । यहाँ 'इति' शब्द वाक्यार्थकी परिसमाप्तिमें प्रयुक्त हुआ है। यथाकर्मका तात्पर्य-जिस प्रकार से कर्म बांधा है उस प्रकार से, और यथानिकरण का तात्पर्य-विपरिणति के हेतुभूत नियत देशकाल आदि करणों की मर्यादा का उल्लङ्घन नहीं करने से, जिस जिस प्रकार से वह कर्म भगवान् ने देखा है वह कर्म उस उस प्रकार से परिणाम को प्राप्त होगा। अब प्रकरण के अर्थ का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि (से तेण?णं गोयमा! एवं वुचइ नेरइयस्स वा०मोक्खो ) इस कारण हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूं कि नैरयिक तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देव वेदना छे. (अहाकम्मं, अहा निगरण जहा जहा तं भगवया दिलै तहा तहा तं विप्परिणमिस्सइ त्ति) यथा सांधेदा म अनुसार मने नि:२। अनुसार, જેવું જેવું જે કર્મ ભગવાને દેખ્યું છે, તે તે પ્રકારે તે કર્મ પરિણમશે. અહીં " इति " ५४ पायनी परिसमाप्ति सतावे छ यथाभ मेटले रे પ્રકારે કર્મ બાંધ્યું છે, એ જ પ્રકારે, અને રથાનિધન એટલે વિપરિણતિના હેતુભૂત નિયત દેશ કાળ વગેરે કરણની મર્યાદાનું ઉલ્લંઘન નહીં કરવું તે. જે જે પ્રકારે જે કર્મ ભગવાને જોયું છે તે તે પ્રકારે તે કર્મ પરિણામને પ્રાપ્ત ७२. वे ५४२९४ना मथ ने। S५सा२ ४२i सूत्र२ ४ छ ३ ( से तेण टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ नेरइयस्स वा० मोक्खा) 3 गौतम ! ते १२ मे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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