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________________ ૬૯ भगवतीसुत्रे " श्रियेति सूत्राशयः । पुनः पृच्छति - 'से कहमेयं' इत्यादि । ' से कहमेयं भंते एवं ' तत् कथमेतत् भदन्त एवम् एवं मोहनीयकर्म वेदयमानस्य कथं केन प्रकारेण एतदपक्रमणं भवतीति प्रश्नः भगवानाह - ' गोयमा' इत्यादि । ' गोयमा ' हे गौतम! 'पुवि से एयं एवं रोयई' पूर्वं तस्य एतत् एवं राचते 'इयाणि से एवं एवं नो रोयइ' इदानीं तस्य एतत् एवं न रोचते ' एवं खलु एयं एवं' एवं खलु एत एवम् '' पूर्वमपक्रमणात माक्रकाले 'से' तस्य अपक्रमणकारिणो जीवस्य 'एयं' एतत् जीवाजीवादिस्वरूपमहिंसादि वा ' एवं ' जिनोक्तप्रकारेण 'रोयइ ' शेचते= श्रद्धत्ते तदाचरणं करोति वा 'इयाणि ' इदानों मोहनोयकर्मण उदयकाले 'से' तस्य 'ए' एतत् जीवादिस्वरूपं जिनमतिपादितं 'नो रोयह' न रोचते= न श्रद्धते न करोति वा, एवं खलु ' एवं एवं' एवम् उक्तप्रकारेण खलु निश्चयेन एतदपक्रमणं भवति । अयं भावः - अपक्रमणात् प्राक् अयं जीवो जिनोक्ततत्त्वेषु श्रद्धाशीलो भवति. जिनाज्ञानुसारेणैव तपःसंयमादिषु प्रवर्त्तते । यदा तु चारित्र - है। इस पर गौतमस्वामी पुनः पूछते हैं कि " से कहमेयं भंते । एवंहे भदन ! मोहनीयकर्म का वेदन करनेवाले जीव का वह अपक्रमग कैसे किस प्रकार से होता है ? तब प्रभु इसका उत्तर देते हुए कहते हैं " " गोयमा " हे गौतम ! " पुवं से एवं एवं रोएइ " पहले उसको यह इस प्रकार से है ऐसा रुचता था " इयाणि से एयं एवं नो रोएइ " और अब उसको यह इस प्रकार से है ऐसा नहीं रुचता है। इसका आशय इस प्रकार से है कि - अपक्रमण करने से पहले उस अपक्रमण करने वाले जीव को जीव अजीव आदि का स्वरूप अथवा अहिंसा आदि पदार्थ जैसे जिनेन्द्र देवने कहे हैं वे वैसे ही हैं इस रूप से रुचता था श्रद्धा थी, अथवा जैसा जिनेन्द्र देवने कहा है उसी रूप से वह आच पूछे छे " से कह मेयं भंते ! एवं " डे असो ! भोडुनीय भनुं वेहन अरनार ते लबनुं अयङ्कुभाणु देवी रीते थाय छे ? तेना उत्त२३ प्रभु हे छे } "गोयमा !” हे गौतम ! “पुत्रं से एयं एवं रोयइ" पडेलां तेने 'ते या प्रमाणे छे' तेम सागतुं मने तेथी ते रुयतु हेतु " श्याणिं से एवं एवं नो रोएइ" भने हवे तेने 'ते આ પ્રમાણે જ છે.’ એમ લાગતું નથી અને તેથી રુચતું નથી તેનું તાત્પ આ પ્રમાણે છે-અપક્રમણ કરતાં પહેલાં તે અપક્રમણ કરનાર જીવને જીવ અજીવ વગેરેના સ્વરૂપની ખાખતમાં તેમજ હિ'સા અહિંસા વગેરેના વિષયમાં જિનેન્દ્ર દેવાનાં કથનમાં શ્રદ્ધા હતી-જિનેન્દ્રદેવે કહ્યા પ્રમાણે જ છે એવું તે વખતે તે માનતા હતા. અથવા જિનેન્દ્રદેવે કહ્યા પ્રમાણે જ તે વખતે તે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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