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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ0 ४ सू. २ उपस्थानापक्रमणस्वरूपम् ६७३ अपक्रामेत् वालपण्डितवीर्यतया। तद् भदन्त ! किमात्मनाऽपक्रामति, अनात्मनाऽपक्रामति, गौतम ! आत्मनाऽपक्रामति, नो अनात्मनाऽपक्रामति मोहनीयं कर्मवेदयन् । तत्कथमेतद्भदन्त ! एवम् ? गौतम ! पूर्व तस्यैतदेवं रोचते, इदानीं तस्यैतदेवं रोचते, एवं खलु एतदेवम् ।।०२।। कहे हैं उसी प्रकार उपशान्त पदको लेकर प्रश्नोत्तरके उपस्थापन अपक्रमणरूप दो आलापक जान लेना चाहिये, किन्तु (नवरं, उदीरणाके दो आलापकोंकी अपेक्षा इन उपशान्तके दो आलापकोंमें विशेष-भेद यह है कि-(उवट्ठावेज्जा पंडियवीरियताए, अवक्कमेज्जा बालपंडियवीरियत्ताए) उपस्थापन पण्डितवीर्यको लेकर होता है और अपक्रमण बालपण्डितवीर्यको लेकर होता है । फिर गौतम पूछते हैं कि (भंते) हे भदन्त ! (से) जो अपक्रमण करता है वह क्या (आयाए अवक्कमइ अणायाए अवक्कमइ) आत्मासे अपक्रमण करता है अथवा अनात्मासे करता है ? अर्थात् अपने आप अपक्रमण करता है अथवा किसी दूसरे द्वारा अपक्रमण करता है ? भगवान कहते हैं (गोयमा) हे गौतम (आयाए अवक्कमइ नो अणायाए अवक्कमइ) वह जीव आत्मासे ही अपक्रमण करता है न कि अनात्मासे किन्तु (मोहणिज्ज कम्मं वेएमाणे) मोहनीयकर्मका वेदन करता हुआ आत्मासे अपक्रमण करता है। फिर गौतम पूछते हैं (भंते) हे भदन्त ! (से कहमेयं एवं) वह इस तरह किस कारणसे होता है ? भगवान कहते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (पुचि से एयं एवं रोयइ) पहले તેમજ ઉપશાન્ત પદને લઈને પ્રશ્નોત્તરના ઉપસ્થાન અપક્રમણ રૂપે બે આલાપકો सभन्न नये. या नवरं) ही२९४ाना मे मासापानी अपेक्षा मा ७५. शान्तना मे मातामा विशेष तायत से छे (उवदाएज्जा पंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा बालपंडियवीरियत्ताए) 34:यान पति पीयने सन थाय छ, भने અપક્રમણ બાલપંડિત વીર્યને લઈને થાય છે તે પછી ગૌતમ પ્રશ્ન કરે છે કે (भते) Boय! A. २५५४माण ४२ छ, ते शु (आयाए अवक्कमइ अणायाए अवक्कमइ )मात्माथी २५५मा ४२ छ अथवा मनात्माथी ४२ छ? अर्थात પિતાની મેળે જ અપક્રમણ કરે છે, અથવા કેઈ બીજાથી અપક્રમણ કરે છે ? भगवान् ४ छ (गोयमा) गौतम ! (आयाए अबक्कमइ नेअणायाए अव क्कमइ) ते १ मात्मा 43 २४ २५५भ ४२ छे, नमिनात्माथी ५५ (माहणिज्ज कम्मं वेएमाणे) भाडनीय भनु वेहन ४२त मात्मा 43 अ५४भ ४२ छ. ते ५छी गौतम पूछे छे : (भंते) महन्त ! ( से कहमेयं एव) ते २॥ प्रमाणे या १२थी थाय छ ? मावान छ (गोयमा !) 3 गौतम! (पुव्वि से एय एवं म० ८५
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧