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________________ ६७२ भगवतीसूत्र पण्डितबीयतयाऽपक्रामेत् ? गौतम ! बालपण्डितवीर्यतयाऽपक्रामेत् नो पण्डितवीयतयाऽपक्रामेत् स्यात् , बालपण्डितवीर्यतयाऽपक्रामेत् , यर्थोदीर्णन द्वावालापको तथोपशांतेनापि द्वौ आलापको भणितव्यो, नवरम्-उपतिष्ठेत् पण्डितवीर्यतया, (उदिण्णेणं) उदीरित होता है तब उसके कारण (जीवेणं ) जीव (अवकमेज्जा) क्या अपक्रमण करता है ? अर्थात् क्या ऊंचे गुणस्थानसे नीचे के गुणस्थानमें आजाता है ? भगवान उत्तर देते हैं कि हे गौतम ! (हंता अवकमज्जा) हाँ गौतम किये हुए मोहनीयकर्मकी उदीरणा होनेपर जीव ऊंचे गुणस्थानसे नीचेके गुणस्थानमें आनेरूप अपक्रमण करता है। गौतम पूछते हैं-(भंते) हे भदन्त ! (से जाव बालपंडियवीरियत्ताए अवकमज्जा) वह जीव यदि अपक्रमण करता है तो क्या वह बालवीर्यको लेकर करता है या पण्डितवीर्यको लेकर करता है अथवा क्या बालपण्डितवीर्यको लेकर अपक्रमण करता है ? भगवान फरमाते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (बालवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा) बालवीर्यको लेकर अपक्रमण करता है किन्तु (नो पंडियवीरियत्ताए अवकमज्जा) पण्डितवीर्यको लेकर अपक्रमण नहीं करता है (सिय बालपंडियवोरियत्ताए अवक्कमेज्जा) बालपण्डितवीर्यतासे कश्चित् अपक्रमण करता है और कथञ्चित् नहीं भी करता है, इसी प्रकार (जहा उदिण्णेणं दो आलावगा तहा उवसंतेण वि दो आलावगा भागियव्वा) जैसे उदीरण पदको लेकर दो आलापक ज्यारे ( उदिण्णेणं) हरित थाय छे त्यारे तेने सीधे (जीवे णं) ( अवक्कमेज्जा ) शु १५भए ४२ छ ? अर्थात् शु या गुणुस्थानथी नीया शुणस्थानमा मावीनय छ ? भगवान समापेछगौतम! (हंता अवकमज्जा) હા, ગૌતમ! કરેલ મેહનીય કર્મની ઉદીરણું થવાથી જીવ ઉચ્ચગુણસ્થાનથી नयना गुणस्थानमा भावीन अ५४मा ४२ छ. गौतम पूछे छे , (भते!) ॐ पून्य ! (से जाव बालपंडियवीरियत्ताए अबकमज्जा) ते २५५भ। કરે છે તો શું તે બાલવીર્યને લઈને કરે છે અથવા પંડિતવીર્યને લઈને કરે છે, અગર શું બાલપંડિતવીર્યને લઈને અપકમણ કરે છે? ભગવાન ફરમાવે छ , (गोयमा !) हे गौतम ! (बालवीरियत्ताए अवकमज्जा) पठितवीयन सन अपमान ४२ छ, ५ (नो पंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा ) पतिवीयन साधन अ५४भए नड ४२ छ. (सिय बालपंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा) मासપંડિતવીર્યને લઈને કેઈ વખતે અપકમણ કરે છે, અને કઈ વખતે નથી ५९ ४२तो, मे४ ते ( जहा उदिण्णेणं दो आलावगा तहा उबसंतेण वि दो आलावगा भणियव्वा ) म उही२५ पहने सने में माता५४ अस छ, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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