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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ०४ सू० २ उपस्थानापक्रमणस्वरूपम् १७१ नो अवीर्यतयोपतिष्ठेत् , यदि वीर्यंतयोपतिष्ठेत् , किं बालवीर्यतयोपतिष्ठेत् पण्डितवीर्यतयोपतिष्ठेत् , बालपण्डितवीर्यतयोपतिष्ठेत् , गौतम ! बालवीर्यतयोपतिष्ठेत् नो पण्डितवीर्यतयोपतिष्ठेत् , नो वालपण्डितवीर्यतयोपतिष्ठेत् । जीवो भदन्त ! मोहनीयेन कृतेन कर्मणोदीर्णेनापकामेत् ? हन्त ! अपक्रामेत् तद् भदन्त ! यावत् भगवान कहते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (वीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) वह वीर्यको लेकर उरस्थान करता है किन्तु (णो अवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) बिना वीर्यके उपस्थान नहीं करता है। फिर गौतम पूछते हैं कि हे भदन्त ! (जइ वीरियत्ताए उचट्ठावेज्जा) यदि वह वीर्यको लेकर उपस्थान करता है तो (किं घालवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) क्या बालवीर्यको लेकर उपस्थान करता है ? या (पंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) पण्डितवीर्यको लेकर उपस्थान करता है ? अथवा (बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) क्या बालपण्डितवीर्यको लेकर उपस्थान करता है । इसपर भगवान कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! वह ( बालवीरियत्ताए उवढावेज्जा) बालवीर्यको लेकर उपस्थान करता है किन्तु (णो पंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) पण्डितवीर्यको लेकर उपस्थान नहीं करता है, इसी तरह (णोबालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेज्जा) बालपण्डितवीर्यको लेकर भी जीव उपस्थान नहीं करता है। फिर गौतम पूछते हैं (भंते) हे भदन्त ! जीवका ( कडेणं मोहणिज्जेणं कम्मेणं) अपना किया हुआ मोहनीयकर्म जब मपान ४ छ, ॐ (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (वीरियत्ताए उबढावेज्जा) ते वायने सन ७५स्थान ४२ छ, ५५ ( णो वीरियत्ताए उबदावेज्जा) १२ पाये ५स्थान नथी ४२ता. ५छी गौतम प्रश्न ४२ छ ड पूज्य ! ( जइ वीरियत्ताए उबट्ठावेज्जा ) ने ते पीयन ने उपस्थान ४२ छ तो (किं बालवीर्यताए उवढावेज्जा) शु पालवीय ने बने उपत्थान ४२ छ अथवा (पंडियवीरियत्ताए उबवावेज्जा) पतिवायन ने उपस्थान ४२ छ, अथवा ( बालडियवीरियत्ताए उवढावेज्जा) शुास तिवीय ने साधने उपस्थान रे छ १ सना भावान वे छ (गोयमा !) 3 गौतम! ते (बालवारियत्ताए उबढावेज्जा ) alय ने वने ५२थान ४२ छ. ५Y (णा पंडियबीरियत्ताए उवद्वावेज्जा) ५तिवीय ने सन ५स्थान ४२॥ नथी. मेर प्रमाणे (णा बालवंडियवीरियत्ताए उवट्टाएज्जा ) सतवीय ने वने ५५ ७१ ५स्थान ४२ता नथी. ते ५छी गौतम. प्रश्न ४२ छ , (भंते ! ) 3 भून्य ! पन! ( कडेणं मोहणिज्जेणं कम्मेणं) पोतानउस मोडनीय भ' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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