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भगवतीसूत्रे अवकमइ, मोहणिज्ज कम्म वेएमाणे। से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! पुवि से एयं एवं रोयइ, इयाणिं से एयं एवं नो रोयइ, एवं खलु एयं एवं ॥ २॥ छाया-जीवो भदन्त ! मोहनीयेन कृतेन कर्मणा उदीर्णेनोपतिष्ठे? हन्त उपतिष्ठेत् तद् भदन्त ! किं वीर्यतयोपतिष्ठेत् अवीर्यतयोपतिष्ठेत् गौतम ! वीर्यतयोपतिष्ठेत्
पूर्व में कर्म का विचार कहा गया है। सकल कर्मों में मोहनीय कर्म प्रधान है । इसलिये मोहनीयको आश्रित करके सूत्रकार कहते हैं"जीवे णं भंते ! मोहणिज्जे" इत्यादि।
मूलार्थ-(भंते ! ) हे भदंत ! (कडेणं मोहणिज्जेणं कम्मेणं ) कृत मोहनीय कर्म के ( उदीपणेणं ) उदीर्ण होने पर-अर्थात् उदय में आने पर (जीवे ) जीव क्या (उचढाएज्जा ) उपस्थापन करता है-अर्थात् परलोकक्रियाओंमें अभ्युपगम करता है ? तात्पर्य यह है कि बंध अवस्था को प्राप्त हुआ मोहनीय कर्म जब उदय में आरहा हो तब जीव क्या परलोक संबंधी क्रियाओं को स्वीकार करता है ? ऐसा यह प्रश्न है। इसका उत्तर प्रभु देते हुए कहते हैं-(हंता उवट्ठाएज्जा) हां गौतम ! जीव तब उपस्थान करता है । अर्थात् मोहनीयकर्म के उदय में पारलोकिक क्रियाओं को स्वीकार करता है। (से भंते ! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा अवीरियत्ताए उवहाएज्जा ? ) हे भदंत ! जीव किस कारणविशेष को लेकर उपस्थान करता है ? क्या वह वीर्यको लेकर उपस्थान करता है या बिना वीर्य के उपस्थान करता है ? ॥
શરૂઆતમાં કમેને વિચાર કર્યો. તમામ કર્મોમાં મેહનીય કમ મુખ્ય છે. તેથી डभाडनीय भनी अपेक्षा सूत्रा२४ छ-"जीवे णं भंते ! मोहणिज्जे"त्यादि
भूसाथ-(भंते!) मगवन्! (कडेणं मोहणिज्जेणं कम्मेणं) इतमानीय ४भ ( उदिण्णेणं) यम मावे त्यारे ( जोवे ) 4 ( उवद्वाएज्जा) शु५स्थान કરે છે? એટલે કે પરલેક ક્રિયામાં અભ્યાગમ કરે છે? તાત્પર્ય એ છે કે જીવે બાંધેલ મેહનીય કર્મ જ્યારે ઉદયમાં આવે છે ત્યારે શું જીવ પરલેક સંબંધી ક્રિયાઓને સ્વીકાર કરે છે? આ પ્રશ્નનો જવાબ આપતાં પ્રભુ કહે છે ( हंता उवढाएजा) , गौतम ! ०१ त्यारे ७५स्थान ४२ छ-मेसे भाडनीय भन यमा पासोठियासाने स्वी४१२ ७२ छ. ( से भंते ! किं बीरियत्ताए उवद्राएज्जा, अवीरियत्ताए उवद्वाएज्जा ?) भगवन् ! शुं ते ७ વીર્યથી ઉપસ્થાન કરે છે કે અવીર્યથી ઉપસ્થાન કરે છે ?
શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧