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________________ ६७४ - भगवतीसूत्र ___टीका-'जीवे गं भंते' जीवः खलु भदन्त ! ' मोहणिज्जेणं' मोहनीयेन 'कडेणं कम्मेणं' कृतेन कर्मणा 'उदिण्णेणं' उदीर्णेन-उदयभावप्राप्तेन ' उवट्ठा. एज्जा' उपतिष्ठेत् , उपस्थान परलोकक्रियासु अभ्युपगमं कुर्यात् । उदयभावमासादितेन मोहनीयकर्मणा परलोकसंबन्धिनां क्रियां जीवः किं स्वीकुर्यादिति प्रश्नः। भगवानाह-हते'त्यादि, 'हंता' हन्त गौतम ! उवट्ठावएज्जा' उपतिष्ठेत् , समुदितमोहनीयकर्मणा परलोकक्रियाया अभ्युपगमं कुर्यादिति भावः। कं करणविशेषमासाद्योपतिष्ठेदित्याह-'से भंते' इत्यादि, ‘से भंते' तद् भदन्त ! 'किं वीरियताए उवट्ठावएज्जा अवीरियताए उवट्ठाएज्जा' किं वीर्यतया उपतिष्ठेत् अवीर्यत. उसको यह इस प्रकार रुचता है और (इयाणिं से एयं एवं नो रोयइ) इस समय उसको यह इस प्रकार नहीं रुचता है ( एवं खलु एयं एवं) इसलिये यह अपक्रमण इस प्रकार होता है । सू०२॥ ___टीकार्थ-गौतम पूछते हैं कि-"जीवे णं भंते" हे भदन्त ! " मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं" अपना किया हुआ मोहनीयकर्म "उदिण्णेणं " जब उदयभावको प्राप्त होता है तब जीव क्या "उवट्ठावेज्जा" उपस्थान करता है-क्या परलोक संबंधी क्रियाको स्वीकार करता है ? अर्थात् मोहनीयकर्मके उदयभावको प्राप्त होनेपर जीव क्या परलोक सम्बन्धी क्रिया को स्वीकार करता है ? यह गौतमका प्रश्न है। भगवान उत्तर देते हैं कि हे गौतम "हंता उवट्ठावेज्जा" हाँ गौतम ! उदित हुए मोहनीयकर्मसे जीव परलोकसम्बन्धी क्रियाको स्वीकार करता है। गौतम पूछते हैंअगर मोहनीयकर्म के उदय से यदि जीव परलोकसम्बन्धी क्रिया को रायइ) ५॥ तेने l रीते मे छ भने (इयाणों से एयं एवं नो रोयइ) या मते तेने २॥ प्रमाणे गमतु नथी ( एवं खलु एयं एवं) माटे । अ५भय मा प्रारे थाय छे. ॥ सू. २॥ -गौतम पूछे छ ॐ “जीवेणं भते ! " 3 पून्य ! 'माहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं) पोते ४२८ भाडनीय में “ उदिण्णेणं' यारे या थाय छ, त्यारे शु“ उबदावेज्जा" ५स्थान ४२ छ, शु ५२।४ समधी ચિાને સ્વીકારે છે? અર્થાત્ મોહનીયકર્મને ઉદયભાવ-પ્રાપ્ત થવાથી જીવ શું પરક સંબંધી કિયા સ્વીકારે છે? આ ગૌતમને પ્રશ્ન છે. ભગવાન જવાબ और गौतम ! “हता उबदावेज्जा" !, गौतम ! य पाभेत માહનીય કર્મ વડે જીવ પરલેક સંબંધી ક્રિયાને સ્વીકારે છે, ગૌતન પૂછે છે કે અગર મેહનીય કર્મને ઉદય વડે જે જીવ ઉપર પરલોક સંબંધી ક્રિયાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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