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भगवतीसूत्रे छाया-कति भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः गौतम ! अष्ट कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः कर्मप्रकृत्याः प्रथम उद्देशो ज्ञातव्यो यावत् अनुभागः समाप्तः, गाथा-कति प्रकतयः कथं बध्नाति कतिभिश्च स्थानबध्नाति प्रकृतीः । कति वेदयति च प्रकृती: अनुभागः कतिविधः कस्य ।०१।। गं भंते " इत्यादि सूत्र कहते हैं- " कइ णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ?" इत्यादि। __मूलार्थ-(भंते ) हे भदन्त ! (कइ णं) कितनी (कम्मपगडीओ) कर्मप्रकृतियां (पण्णत्ताओ) कही गई है ? भगवान् इसका उत्तर देते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! ( अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ) आठ कर्म प्रकृतियां कही गई हैं । (कम्मप्पगडोए पढमो उद्देसो नेयव्यो) कर्मप्रकृति से प्रथम उद्देशक जानना चाहिये । कहांतक जानना चाहिये ? इसके लिये कहा गया है कि (जाव अणुभागो समत्तो) यावत् " अनुभाग: समाप्तः" यहां तक जानना चाहिये । प्रज्ञापना सूत्र में कहे गये तेबीसवें कर्मप्रकृति नाम के पदका यहां प्रथम उद्देशक जानना चाहिये यावत् अनुभाग समाप्त तक । प्रज्ञापना में २३ वें पद के प्रथम उद्देशक में जितने अर्थ कहे गये हैं उनकी संग्राहिका यह गाथा है-(कइ पयडी) कर्म प्रकृतियां कितनी हैं ! (कह बंधइ ) जीव किस प्रकार से प्रकृतियों का बंध करता है ? ( काहिं ठाणेहिं बंधई पयडी) कितने स्थानों द्वारा जीव थित प्रकृतिने ४ाने भाटे सूत्र४२ ४३ छ-" कइ णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ १ त्याह.
भूसाथ - (भंते !) 3 पूल्य ! (कइ णं) ही ( कम्मप्पगडीओ) शुभ प्रतियो ( पण्णत्ताओ?) ही छ ? उत्तर-(गोयमा ! ) गौतम ! ( अद्र कम्मप्पगडी ओ पण्णत्ताओ) -13 मप्रतिमा डसी छे. (कम्मापडीए पढमो उद्देसो नेयम्वो) प्रकृतिना विषयमा प्रथम देश४ मही तशवो नएस. च्या सुधा शुवो नेस, ते मतावा माटे छे (जाव अणुभागो समत्तो) “मनुमा सभास" सुधी पशुवो. प्रज्ञापना (पन्नए) सूत्रना તેવીસમા “કર્મકૃતિ નામના પદને પડેલે ઉદ્દેશક અહીં “અનુભાગ સમાપ્ત” પદ સુધી ગ્રહણ કરવો. પ્રજ્ઞાપનાના તેવીસમા પદના પ્રથમ ઉદેશકમાં જેટલા मथ ४ा छ तेनी सडा 21 प्रमाणे छ-( कइ पयडी) भतिया
की छ ? ( कह बंधा) ७१ वी शत प्रतियोनी ५५ मांधे छ ? (काहिं ठाणेहिं बंधई पयडी) खi स्थान। १३ ७१ प्रतियोनी ५५ मधे छ ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧