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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ ७० ३ सू० ११ श्रमणविषयेतद्वेदनादिस्वरूपम् ६३७ मतान्तरैः 'भंगंतरेहिं' भङ्गान्तरैः, 'णयंतरेहिं' नयान्तरैः, 'नियमंतरेहिं ' नियमान्तः, 'पमाणतरेहि' प्रमाणान्तरैः, 'संकिया' शङ्किताः-देशतः सर्वतश्च शङ्का प्राप्ताः, ज्ञानान्तरादारभ्य प्रमाणान्तरपर्यन्ततत्तत्कारणविशेषमासाद्य जिनप्रतिपादितार्थेषु शङ्कादिकमादधानाः श्रमणाः कांक्षामोहनीय कर्म वेदयन्तीत्यभिप्रायः । तथा ' कंखिया ' कांक्षिता:-परदर्शनग्रहणरूपां कांक्षा प्राप्ताः, 'वितिगिच्छिया' विचिकित्सिताः, विचिकित्सां-फलविषयकं संशयं प्राप्ताः, · भेयसमावन्ना' भेदसमापन्नाः-बुद्धिविपर्यासरूपभेदं प्राप्ताः, 'कलुससमावन्ना' कलुषसमापनाःजिनोक्तं सर्व सत्य न वेति मतिमालिन्यमुपगताः, एवं-पूर्वोक्तप्रकारेण खलु= निश्चयेन 'समणा णिग्गथा ' श्रमणाः निर्ग्रन्थाः अपि 'कंखामोहणिज्जं कम्म' मतान्तरों द्वारा, " भंगंतरेहिं " भंगान्तरों द्वारा, "णयंतरेहिं" नयान्तरों द्वारा, " नियमंतरेहिं" नियमान्तरों द्वारा, “पमाणतरेहिं " प्रमाणान्तरों द्वारा “संकिया" शंकायुक्त हुए-देश से अथवा सर्वरूप से शंका दो प्राप्त हुए-अर्थात् ज्ञानान्तर से लेकर प्रमाणान्तर तक के उस२ कारणविशेष को प्राप्त करके जिनप्रतिपादित जीवादिक पदार्थों में शंका आदि धारण करते हुए श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म को वेदते हैं। तथा "कखिया” परदर्शन ग्रहण करनेरूप कांक्षाको प्राप्त हुए “वितिगिच्छिया" फलविषयक संशय को प्राप्त हुए, “भेयसमावन्ना" बुद्धिविपर्यासरूप भेद को प्राप्त हुए, “ कलुससमावन्ना" जिनोक्त सब सत्य है कि नहीं है, इस प्रकार से मति की मलिनता को प्राप्त हुए वे निर्ग्रन्थ श्रमण भी "एवं"इस तरह "खलु"निश्चयसे कांक्षामोहनीय कर्मका अनुभव करते है,
" मयंतरेहि " मतान्त। 43, “ भगतरेहि " सन्त । १3, ‘णयंतरेहि" नयान्त 43. “ नियमंतरेहि" नियमान्त।। १3, मने “पमाणंतरेहिं" प्रभागुन्त। १3, “ संकिया" शायुक्त थयेस-शिथी सवये शो पामेलाએટલે કે જ્ઞાનાન્તરથી લઈને પ્રમાણાન્તર સુધીના તમામ કારણેને લઈને જિનપ્રતિપાદિત જીવાદિક પદાર્થોમાં શંકા વગેરે કરતા મુનિયે કાંક્ષાએહનીય
भन वहन ४२ छ. तथा “ कंखिया" ५२ ४शनने (मीना यमन) अड ४२वानी ४२ रामनार, " वितिगिच्छिया " २॥ ४२०ीतुं २॥ ३॥ भरी नहिं ? मेवी सतनी संशय ना ४यमा उत्पन्न थयो छ तेवा, “ भेयसमावन्ना" भुद्धिविपर्यास ३५ लेह भानामा हलव्यछे तेव, “ कलुससमावन्ना" જિનેશ્વરભગવાને કહેલ તમામ વાર્તા સત્ય છે કે નહીં? એવા પ્રકારની બુદ્ધિની मसिनता नामा पेह छ तेवा श्रम निन्थी ५५ " एवं" मेवी रीते " खलु " अवश्य ४iक्षाभानीय मनु वेहन ४२ छे, श्रम नि याने याने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧