________________
प्रमेयचन्द्रिकाटीका ० १ ३०३ सू९ काङ्क्षावेदतोयोदोरणावरून ६११ अर्थात् अतीततां गमितं यत् तदपि कर्म नोदीरयति, तस्यातीतत्वात्, अतीतस्य चासत्रात् । असतश्चोदीरणाविषयाभावात् ।
ननु यथा पूर्वमूत्रे' उदीरण गर्हणसंवरणरूपं पदत्रयं गृहीतम्, तथाऽस्मिन् सूत्रे' तं किं उदिननं उदीरेइ' इत्यादि सूत्रेण गर्हणसंवरणरूपं पदद्वयं विहाय उदीरणारूपाद्यपदस्यैव कथं ग्रहणं कृतम् ? उच्यते - उदीरणादिषु चतुर्षु कर्म
जो कर्म उदय में आगया है वह कर्म उदय के बाद पश्चात्कृत हो जाता है- अर्थात् वह भूतकालिक बन जाता है । इसलिये उदय में आचुका होने के कारण वह कर्म उदीरित नहीं होता- उदीरणा का विषय नहीं बनता, क्योंकि उसका अतीत हो जाने के कारण सत्व ही नहीं रहता है। उदीरणा असत् की नहीं होती - सत्-मौजूद कर्मकी ही होती है।
शंका- जैसे पूर्वसूत्र में "उदीरण, गर्हण, और संवरण, इन तीन पदों का ग्रहण हुआ है, उसी तरह से इस " उदिण्णं उदीरेइ " सूत्र में " तं किं उदिन्नं उदीरेइ " इत्यादि सूत्र के अनुसार गर्हण, संवरणरूप दो पदों को छोडकर केवल उदीरणारूप पहिले पदका ही ग्रहण क्यों किया गया है ? शंकाकार का तात्पर्य यह है कि उदीर्ण पद के साथ “ उदीरेइ यह एक ही क्रियापद जोड़ा गया है " गरहइ " संवरइ " ये दो क्रियापद नहीं जोड़े गये हैं सो शंकाकार यहां इसी बात को पूछ रहा है कि इन दो पदों के नहीं जोड़ने का कारण क्या है ?
""
99
ક ઉદયમાં આવી ગયું હાય છે તે કમ યમાં થઈ જાય છે-એટલે કે તે ભૂતકાલિક ખની જાય છે. વાને કારણે તે કમ ઉીરિત થતું નથી-એટલે કે नथी. अणु } तेनु' सत्त्व (अस्तित्व) ४ रहेतुं नथी. अस्तित्व रहित (असत् ) ની ઉદીરણા થતી નથી—સત્ (અસ્તિત્વ વાળા) કર્મીની જ ઉદીરણા થાય છે.
આવ્યા પછી પશ્ચાદ્ભુત તેધી ઉદયમાં આવી ચૂક· ઉદીરણાના વિષય બનતું
शअ―नेवी रीते पडेला सूत्रमां “ उदीरण”, “ गर्हण " भने “संवरण" थे त्रषु यहोनो सभावेश अवामां आव्यो छे, शेवी रीते " उदिष्णं उदीरेइ " सूत्रभां “त ं किं उदिन्नं उदीरेइ " त्याहि सूत्र अनुसार गई भने सवर એ એ પદોને છોડીને ફક્ત ઉદીરણા પદને જ કેમ ગ્રહણ કર્યુ* છે ? શંકા કરનારના હેતુ એ છે કે उही " पहनी साथै " उद्दीरेइ " मे मेड ४ डियायहने लेडयु छे, तेवी रीते “ गरहइ " भने “ संवरइ " से ये दिया પદાને જોડયાં નથી તેા એ બે પદ્દાને નહી જોડવાનું શું કારણ છે ?
."
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧