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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १४० ३ ० ९ काङ्क्षावेदनीयस्योदीरणास्वरूपम् ६०१ आत्मनैव संतृणोति तत् किम् उदीर्णमुदीरयति अनुदीर्णमुदीरयति अनुदीर्णम् उदीरणा भव्यं : कर्म उदीरयति, उदयानन्तरपश्चात्कृतं कर्म उदीरयति, गौतम ! नो उदीर्णमुदीरयति, नो अनुदीर्णमुदीरयति, अनुदीर्णमुदीरणाभव्यं कर्म उदीरयति, नो उदयानन्तर पश्चात् कृतं कर्म उदीरयति । यत् तद् भदन्त ! गर्दा करता है, और अपने आप ही वह उसका संवर करता (उसको रोकता) है । इस तरह से पूर्वोक्त पाठका यहां उच्चारण करना चाहिये। (जं तं भंते! अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेव गहरइ, अप्पणा चेव संवरेइ, तं किं उदिष्णं उदीरेइ, अणुदिण्णं उदीरेइ, अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेह, उदयानंतर पच्छाकडे कम्मं उदीरेइ ?) हे भदन्त ? यदि जीव अपने आप ही कांक्षा मोहनीय कर्म की उदीरणा करता है। अपने आप ही यदि उसकी ग करता है, और अपने आप ही यदि उसका संवर करता है, तो क्या वह उदीर्ण की उदीरणा करता है ? या अनुदीर्ण की उदीरणा करता है ? अनुदीर्ण किन्तु उदीरणाके योग्य की उदीरणा करता है ? या उदयानन्तर पश्चात्कृतकर्म बादमें किये गये कर्म की उदीरणा करता है। (गोयमा !) हे गोतम! (नो उदिष्णं उदीरेइ) न उदीर्णकी उदीरणा करता है (नो अणुदिष्णं उदीरेइ) न अनुदीर्ण की उदीरणा करता है । ( अणुदिष्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ) किन्तु जो कर्म अनुदीर्ण है, अर्थात् उदीरणामें नहीं आया है किन्तु उदीरणा के योग्य होता है उसी कर्म की उदीरणा करता है। ( णो उद्यानंतर पच्छाकडं कम्मं उदीरेइ) जो कर्म उद्यानन्तर पश्चात्कृत होता है। પૂર્વોક્ત પાઠનું કથન અને જીવ જાતે જ તેનેા સવર કરે છે. આ પ્રકારના सहीं कुश्वु लेहो ( जं तं भंते ! अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चैव गरहइ, अपण । चेव संवरेइ, तं किं उदिण्णं उदीरेइ, अणुदिष्णं उदीरेइ, अणुदिष्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ, उदयानंतरपच्छाकड कम्मं उदीरेइ १ ) डे पून्य ! જો જીવ પાતે જ કાંક્ષામોહનીય કર્મીની ઉદીરણા કરે છે, જે તે પોતે જ તેની ગર્યાં કરે છે, અને જો જીવ પોતે જ તેના સવર કરે છે. તે શુંતે ઉત્તીણની ઉદીરણા કરે છે ? કે અનુદીણું ની ઉદીરણા કરે છે? કે અનુદ્દીણુ એટલે કે ઉદ્દીરણામાં નહીં આવેલ પણ ઉદ્દીરાને ચાગ્યની ઉદીરણા કરે છે ? કે ઉદ્દયાનન્તર यश्चात्कृतम्भनी उद्दीरणा अरे छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! (नो उदिण्णं उदीरेइ ) लव उट्टीएर्शनी उहीरा उरतो नथी, ( नो अणुदिष्णं उदीरेइ ) अनुद्दीर्जुनी उदीरणा उरतो नथी, ( अणुदिष्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ ) पशु के अभ भ० ७६ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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