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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. २ सू० १४ असञ्झ्यायुष्कनिरूपणम् ५२५ उत्कृष्टेन पल्योपमस्यासंख्येयभागं प्रकरोति । मनुष्यायुष्कमपि एवमेव देवायुष्क यथा नैरयिकायुष्कम् । एतस्य भदन्त ! नैरयिकासंघ्यायुष्कस्य तिर्यग्योनिकासज्यायुष्कस्य, मनुष्यासंड्यायुष्कस्य, देवासंड्यायुष्कस्य च कतरत् कतरेभ्यः अल्पं वा नैरयिक आयुका बंध करता है, तो कम से कम १० दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट से एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण जितनी आयु का बंध करता है। (तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहपणेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ) जब वह असंज्ञी जीव तिर्यग्योनिक जीव की आयु का बंध करता है तो कम से कम में एक अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उसका बंध करता है, और उत्कृष्ट से एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण जितना उसका बंध करता है। ( मणुस्साउयपि एवंचेव देवाउए जहा नेरइयाउए ) मनुष्य की आयु का बंध भी वह इसी प्रकार से करता है । तथा देवायु का बंध वह नारकायुष्क की तरह करता है। (एयस्स णं भंते ! नेरइयअसन्निआउस्स तिरिक्खजोणियअसन्निआउयस्स, मणुस्स असन्निआउयस्स देवअसन्निआउयस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा ?) हे भदन्त ! इन नैरयिक असंज्ञी आयुष्क तिर्यग्योनिक असंज्ञि आयुष्क, मनुष्य असंज्ञी आयुष्क, और देव असंज्ञी आयुष्क, के पकरेइ) ने ते असशी यो ना२श्रीन आयुष्यने। 14 मा छे माछामा ઓછા દસ હજાર વર્ષને અને વધારેમાં વધારે પપમના અસંખ્યાતમા मास प्रमाण मायुष्यने ५५ मांधे छे, (तिरिक्खजोणियाइयं पकरेमाणे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ) २ ते અસંસી જ તિર્યંચ મેનિના આયુષ્યને બંધ બાંધે તે ઓછામાં ઓછા એક અંતમુહૂર્ત પ્રમાણ અને વધારેમાં વધારે એક પાપમના અસંખ્યાતમાં मास प्रमाणु आयुष्यने ५५ मधे छे, (मणुसाउयपि एवं चेव देवाउए जहा नेरइया उए ) मनुष्यना मायुष्यने ५५ ०८ प्रमाणे नवो, भने ससशीજીવો દેવાયુષ્યને બંધ નરકાયુષ્ય પ્રમાણે જ બાંધે છે. (एयस्स गंभंते ! नेरइयअसन्निआउयस्स तिरिक्खजोणिय असन्निआउयस्स, मणुस्सअसन्नि उयरस देवअसन्निआउयस्स य कयरेहिंतो अप्पे वा बहए वा तुल्ले वा, विसेसाहिए वा १ ) 3 पूज्य ! ना२४ी असशी आयुष्याणा, तिय નિક. અસંસી આયુષ્યવાળા મનુષ્ય અસંસી આયુષ્યવાળા અને દેવાસંણી શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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