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________________ भगवतीसूत्रे तथा 'तेरिच्छियाणं' तैरश्चिकानां-तिर्यग्योनिकजीवानां देशविरतिमतां गजावादिजीवानाम् ।११। तथा 'आजीवियाणं ' आजीविकानां पाखण्डिविशेषणाम् , अथवा नग्नवधारिणां गोशालकशिष्याणाम् , यद्वा ख्यातिलाभमानप्राप्तये तपश्चरणादिकर्तृणामिति ।१२। तथा 'आभिओगियाणं' आभियोगिकानाम् , अभियोगो= विद्यामंत्रादिभिः परेषां वशीकरणमारणमोहनोच्चाटनादिकरणम् , स अभियोगो विद्यते येषां ते आभियोगिकास्तेषाम् , अभियोगो द्विप्रकारकः । तदुक्तम् "दुविहो खलु अभिओगो, दव्वेभावे य होइ नायव्यो । दव्वंमि होंति जोगा, विज्जा मंता य भावम्मि ॥१॥ " णाणस्स केवलीणं, धम्मारियस्स सव्वसाहणं । माई अवनवाई किव्विसियं भावणं कुणइ॥१॥" जो ज्ञान का, केवलियों का, धर्माचार्य का, और साधुओं का अवर्णवाद करता है, उनके विषय में मायाचारी का भाव रखता है वह किल्विषिक कैल्विषिकी भावना को करता रहता है १० । “तेरिच्छियाणं" देशविरति का पालन करने वाले तिर्यंच गज अश्व आदि जीव ११ । “ आजीवियाणं " पाखण्डिविशेष रूप आजीविक, अथवा नग्नत्व को धारण करने वाले गोशालक के शिष्य अथवा ख्याति , लाभ, मान प्राप्ति के निमित्त तपश्चरण आदि करने वाले १२। तथा' आभिओगियाणं' विद्या, मंत्र आदि द्वारा दूसरों को वश में करना, मारण मोहन, उच्चाटन, आदि करना यह अभियोग है, यह अभियोग जो करते हैं, वे आभियोगिक हैं १३। अभियोग दो प्रकार का होता है, कहा भी है “णाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स सव्वसाहूणं । माई अवन्नवाई, किबिसियं भावणं कुणइ ॥ १॥" જે જ્ઞાનને, કેવલીઓને, ધર્માચાર્યો અને સાધુઓને અવર્ણવાદ કરે છે, તેમની સાથે માયાચારીને ભાવ રાખે છે, તેને કિત્વિષિક કહેવામાં આવે છે. से विषि: स्पिषि: (पापयुत) भावन! ४२ छ. "तेरिच्छियाण' विरतिर्नु पासन ४२ना। १४, मध वगेरे तिर्थ य 1. तथा 'आजीवियाण" मी ખાસ કરીને આજીવિક, તથા નગ્નત્વને ધારણ કરનારા શાલકના શિષ્ય, અથવા भ्याति, सास, भान वगेरेनी पाति माटे तपस्या वगैरे ४२ना२१. "आभिओगियाण विद्या, भत्र वगेरेथी मन्यने पोताने १२४२वा, तेभ भारण, भाडन, अभ्याटन, माहि ४२वा तेनुं नाम ' अभियोग' छे. अने ते मलियो४२नारने " मालि. યોગિક” કહેવામાં આવે છે. અભિગ બે પ્રકારના હોય છે. કહ્યું પણ છે – શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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