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________________ प्रयमेचन्द्रिकाटीका श० १ उ० २ सू० १३ उपपातप्रकरणनिरूपणम् ५०५ जघन्येन भवनवासिषु उत्कर्षेण वानव्यंतरेषु६ । अवशेषाः सर्वे जघन्येन भवनवासिषु, उत्कर्षेण वक्ष्यामि-तापसानां ज्योतिषिकेषु७, कान्दर्पिकाणां सौधर्मे कल्पे८, चरकपरिव्राजकानां ब्रह्मलोके कल्पे९, किल्विपिकाणां लान्तके कल्पे१०, तैरश्चिकाणां सहस्रारे कल्पे११, आजीविकानामच्युते कल्पे१२, आभियोगिकानामच्युते कल्पे१३, सलिङ्गिदर्शनव्यापनकानामुपरिमौवेयकेषु१४ ।।सू०१३॥ धित संयमासंयमवालोंका जघन्य से भवनवासियों में और उत्कृष्टसे ज्योतिष्क देवों में ( असण्णीणं ) असंज्ञी जीवोंका (जहण्णेणं) जघन्यसे (भवणवासीसु) भवनवासियों में ( उक्कोसेणं) और उत्कृष्ट से ( वाणमंतरेसु) वानव्यंतरों में (अवसेसा सव्वे जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वोच्छामि) तथा इनके सिवाय और आठका जघन्यसे भवनवासियों में उत्पाद कहा गया है। उत्कृष्टसे इनका उत्पाद कहता हूं-(तावसाणं) तापसों का ( जोइसिएसु ) ज्योतिष्कों में ( कंदप्पियाणं सोहम्मे कप्पे) कांदर्पिकों का सौधर्मकल्प में ( चरगपरिव्वायगाणं बंभलोए कप्पे) चरक परिव्राजकोंका ब्रह्मलोक कल्पमें (किग्विसियाणं) किल्विषिकोंका (लंतगे कप्पे) लान्तक कल्पमें-छट्टे देवलोकमें- तेरिच्छियाणं) तिर्यश्चोंका (सहस्सारे कप्पे ) सहस्रार कल्पमें (आजीवियाणं अच्चुए कप्पे ) आजीविकों का अच्चुत कल्प में (आभिओगियाणं अच्चुए कप्पे ) आभियोगिकों का अच्युत कल्पमें (सलिंगिदसणवावन्नगाणं) और दर्शनभ्रष्ट वेषधारियों का ( उवरिमगेविज्जएसु ) उपरिम अवेयकों में उत्पाद होता है। वाजानी ( जहण्णेणं भवणवासीस उक्कोसेणं जोइसिएसु) माछामा माछ। भवनवासीमामा भने वधारमा वधारे ज्योतिषी हेवामा ( असण्णीणं ) मसजी वोन (जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु) माछामा माछ। ભવનવાસીઓમાં અને વધારેમાં વધારે વાણવ્યંતરમાં ઉપપાત થાય છે. (अवसेसा सव्वे जहण्णेण भवणवासीसु उक्कोसेणं वोच्छामि) ते सिवायना બાકીના સર્વનો ઓછામાં ઓછો ભવનવાસીઓમાં ઉપપાત થાય છે. ઉત્કૃષ્ટની मपेक्षा तेभने। S५यात छु-(तावसाणं जोइसिएसु) ॥५सोना न्योतिष्य वामi, (कंदप्पियाणं सोहम्मे कप्पे) हपिना सौधर्म ४६५मां, (चरगपारिव्वायगाणं वंभलोए कप्पे) ३२४ परिवाना ग्रह्म ४५मा, (किब्विसियाणं) विपिानी, ( लतगे कप्पे ) aids ४६५i, ( तेरिच्छियाणं ) तिय यानी, ( सहस्सारे कप्पे) सखा२ ४६५i ( आजीवियाण अच्चुए कापे) माविनी अयुत ४८५मां, ( आभिओगियाणं अच्चुए कप्पे ) लियोनि वानी अच्युत ४६५i, (सलिंगि देसणवावन्नगाणं) मने दृशनभ्रष्ट स्ववेषधा२नो, ( उवरिमगेविज्जएसु) परिभ રૈવેયકમાં ઉપપાત થાય છે. भ० ६४ શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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