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________________ ५०४ भगवती सूत्रे 1 पपातः प्रज्ञप्तः । गौतम ! असंयतभव्यद्रव्य देवानां जघन्येन भवनवासिषु, उत्कर्षेणोपरिमग्रैवेयकेषु१, अविराधितसंयमानां जघन्येन सौधर्मेकल्पे, उत्कर्षेण सर्वार्थसिद्धे विमानेर । विराधितसंयमानां जघन्येन भवनवासिषु, उत्कर्षेण सौधर्मे कप्पे३ । अविराधितसंयमासंयमानां जघन्येन सौधर्मे कल्पे, उत्कर्षेणाच्युते कल्पे४ । विराधितसंयमासंयमानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कर्षेण ज्योतिषिकेषु५ । असञ्ज्ञिनां श्रद्धाभ्रष्ट वेषधारियोंका (एएसि णं) इन सबका (देवलोगेसु उववज्जमाणाणं) यदि ये देवलोकों में उत्पन्न होवे तो ( कस्स कहिं उववार पण्णत्ते ) किसका कहां उत्पाद कहा है। (गोयमा) हे गौतम! (असंजयभवियदव्य देवाण) संयमरहित भत्यद्रव्य देवोंका (जहणेगं) जघन्यरूप से (भवणवा - सीसु) भवनवासियोंमें (उक्को सेणं) और उत्कृष्टसे ( उचरिमगेविज्जएस) उपरिम ग्रेवेयकों में ( अविराहियजमाणं ) अखंडित संयमवालों का ( जपणेणं सोहम्मे कप्पे ) जघन्य से सौधर्मकल्प में (उक्को सेणं) और उत्कृष्टसे (सिद्धे विमाणे) सर्वार्थसिद्ध विमान में (विराहियसंजमाणं जहणेणं भवणवासी, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे ) विराधित संयमवालों का जघन्यसे भवनवासियोंमें और उत्कृष्टसे सौधर्मकल्प में ( अविराहिय संजमा संजमाण) अविराधित संयमासंयमवालों का (जहणेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ) जघन्यसे सौधर्मकल्प में और उत्कृष्टसे अच्युतकल्पमें (विराहिय संजमा संजमाणं जणेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएस) विरा ये जघानाने तेथे देवसोभां उत्पन्न थाय तो (कस्स कहिं उववाए पण्णत्ते) अनो उचां उपयात (भ) उद्यो छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( असंजयवियदव्वदेवाणं ) સયમરહિત लव्यद्रव्यवान! ( जहणणेणं ) सोछाभां मोछो ( भवणवासिसु) लवनवासीशोभां ( उक्कोसेण ) मने वधारेभा वधारे ( उवरिमगेविज्जएसु ) (परिभ ग्रैवेयप्रेमां उपयात ( नन्भ ) थाय छे. ( अविराहिय संजमाणं ) अमंडित संयभवाणानो, ( जहणणेणं सोहम्मे कप्पे ) ओछाभां मोछो सौधर्भ उद्यम (उक्को सेणं) भने वधारेमा वधारे ( सव्वट्टसिद्धे विमाणे ) सर्वार्थसिद्ध विभानभां, ( विराहियसंजमाणं जहणणेणं भवणवासीसु, उकोसेणं सोहम्मे कप्पे ) विराधित संयभवाजानो मोछामां भेोछो लवनवासीशोभां मने वधारेभां पधारे सौधर्भमा ( अविराहिय संजमा संजमाणं ) व्यविराधित संयभास'यभवाजानो ( आराध श्रावनो ) ( जहणेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ) माछामा छो सौधर्म उपमा भने वधारेभां पधारे अभ्युत उदयभां ( मारभा देवसोमा ) (विराहियस मासजमाणं) विराधित संयभास'यभ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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