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भगवतीसूत्रे
यन्ति, अभीक्ष्णमाहारयन्ति, शेषं यथा नैरयिकाणां यावद्वेदनेति। मनुष्याः भदन्त ! सर्वे समक्रियाः ?, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तत्केनार्थेन भदन्त ! गौतम ! मनुष्यात्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सम्यग्दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यगमिथ्यादृष्टयश्च, तत्र ये ते सम्यग्दृष्टयस्ते त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संयताः, संयतासंयताः, असंयताः, तत्र येते संयतास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तत्तथा-सरागसंयताश्च ते अप्पतराए पोग्गले आहारेंति ) जो अल्पशरीरवाले मनुष्य हैं वे अल्पपुद्गलों का आहार करते हैं और (अभिक्खणं आहारेति। निरन्तर आहार करते हैं । (सेसं जहा जेरइयाणं जाव वेयणा) बाकी का समस्त कथन वेदना तक नारकजीवों की तरह जानना चाहिये । (मणुस्सा णं भंते ! सम्वे समकिरिया) हे भदन्त ! मनुष्य सब क्या एकसरीखी क्रियावाले होते हैं ? (गोयमा ) हे गौतम ! (णो इणढे समढे ) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (से केगडेणं भंते !) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा) हे गौतम) (मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता) मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये हैं । ( तं जहा) वे ये हैं-(सम्मादिट्टी, मिच्छादिष्टी, सम्मामिच्छादिही ) सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि (तत्थणं जे ते सम्मदिट्ठी ) इनमें जो सम्यगूदृष्टि मनुष्य हैं (ते तिविहा पनत्ता) वे तीन प्रकार के कहे गये हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार से-(संजया, संजयासंजया, असंजया) संयत, थालीने (२६. २हीने ) मा.२ ४२ छ. (जे अप्पसरीरा ते अप्पतराए पोगले आहारेति) ! २५६५ शरी२वा डाय छ तेस। २५६५ पुगतान। माहा२ ४२ छ भने ( अभिक्खणं आहारैति ) निरंत२ २७.२ ४२ छ, (सेसं जहा नेरइयाणं जाव वेयणा) वेहन सुधार्नु पाहीन अधुये पाणुन नालीन वानी सभ २४ तjg, (मणुस्साणं भंते ! सव्वे समकिरिया ?) पून्य ! २ अपाय मनुष्य से सजी या डाय छ ? ( गोयमा !) गौतम ! (णो इगटे समढे) PAL PAथ ॥२॥१२ नथी मेटले 3 अवाय मनुष्यो में स२०ी जिया नथी. ( से केणटेणं भंते०! ) 3 orय ! भा५ ॥ ४२णे मेj ४। छ। ? ( गोयमा ! ) & गौतम ! ( मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता) मनुष्य! त्रए ४॥२॥ छ. (तं जहा ) ते मा प्रभारी छ-( सम्माद्दिद्वी, मिच्छादिदी, सम्मामिच्छादिट्ठी,) सभ्यष्टि, मिथ्याष्टि सने सभ्य५ मिथ्याष्टि ( तत्थणं जे ते सम्मदिदी) तेमा सभ्यष्टि मनुष्यो छे (ते तिविहा पण्णत्ता) तेमन जामा १२ छे. (तं जहा) ते 21 प्रमाणे छे. (संजया संजयासंजया असंजया)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧