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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ० २ सू० ६ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक निरूपण ४४७ न्द्रियतिर्यग्योनिकाः भदन्त ! सर्वे समक्रियाः ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः : तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते, गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकास्त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - सम्यग्दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यग्मिथ्यादृष्टयः, तत्र ये ते सम्यग्दृष्टयस्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - असंयताश्च संयताऽसंयताश्च । तत्र ये ते संयतासंयतास्तेषां तिस्रः क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, असंयतानां चतस्रः, मिथ्यादृष्टीनां पंच, सम्यग्मिथ्यादृष्टीनां पंच ॥ सू० ६ ॥
निरूपण ( जहा रइया) नैरयिक जीवों की तरह जानना चाहिये । ( णाणत्तं किरियासु ) क्रिया में भेद हैं । (पंचिदियतिरिक्ख जोणिया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ) हे भदन्त ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिवाले सब जीव क्या एकसरीखी क्रियावाले होते हैं ? (गोयमा ! णो इण्डे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( से केणट्टेणं भंते ! एवं बुचइ १ ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम! (पंचिदियतिरिक्ख जोणिया तिविहा पण्णत्ता) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिवाले जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं । (पृ. १४३) से (तं जहा) वे इस प्रकार से ( सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी) सम्यकूदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यगूमिध्यादृष्टि । (तत्थ णं जे सम्मद्दिट्ठी, ते दुबिहा पण्णत्ता) इनमें जो सम्यग्दृष्टि जीव हैं, वे दो प्रकार के होते हैं - ( तं जहा ) जैसे - ( असंजया, संजया संजया य ) एक असंयत और दूसरे संयतासंयत । (तत्थणं जे ते संजया संजया तेसिणं तिष्णि किरियाओ कज्जंति) इन में जो संयतासंयत
(जहा रइया) नारडीना भवना वर्णुन प्रमाणे समन्वु ( णाणत्तं किरियासु ) परंतु यामां लेह छे ते अहे छे. ( पंचदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? ) डे पून्य ! पथेन्द्रिय तिर्यथ योनिवाणा मधाय लवे। शु' मे सरणी प्रियावाणा होय छे ? ( गोयमा ! णो इणट्टे खमट्टे ) हे गौतम! मा अर्थ मरामर नथी ( से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ ) है यून्य ! साथ शा अरशे येवुौं उडे! छो ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता ) यथेन्द्रिय तिर्यथ योनिवाणा लवो ऋणु अारना छे. ( तं जहा ) ते या प्रमाणे छे. ( सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ) सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि मने सभ्य मिथ्यादृष्टि ( भिश्रदृष्टि ) ( तत्थणं जे सम्म हिट्टी ते दुबिहा पण्णत्ता ) तेमां ने सभ्यग्दृष्टि को छे ते मे अारना हाय छे. ( तं जहा ) ते या प्रभा छे. ( असंजया, संजया संजया य ) (१) असंयत भने २ संयतासंयत “ तत्थणं जे ते संजयासंजया तेसिणं तिण्णि किरियाओ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧