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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. २ सू०४ असुरकुमारादिवक्तव्यता तत्थ णं जे ते मिच्छट्ठिी तेसि णं पंच किरियाओ कज्जति, तं जहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया । एवं सम्मामिच्छदिट्ठीणंपि, से तेणद्वेणं गोयमा०।"
आयुष्कोपपत्तिसूत्रं यथाअसुरकुमारा णं भंते! सव्वे समाउया सव्वे समोववन्नगा? गोयमा! नो इणटेसमटे ! से केणटेणं भंते । गोयमा ! असुरकुमारा चउन्विहा पनत्ता, तं जहा-अत्थेगइया पंच किरियाओ कजंति" जो असुरकुमार मिथ्यादृष्टि हैं उनमें पांच क्रियाएं होती हैं “तं जहा" वे इस प्रकार से-"आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया” आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया " एवं
सम्मामिच्छादिहीणं पि, से तेणटेणं गोयमा०" इसी प्रकार सम्यक मिथ्यादृष्टि असुरकुमारों के भी ये ही पाँच क्रियाएँ होती हैं। इस कारण हे गौतम ! मैं ने ऐसा कहा है कि समस्त असुरकुमार एकसी क्रियावाले नहीं होते हैं। आयुष्कोपपत्तिसूत्र-जैसे-"असुरकुमाराणं भंते! सव्वे समाउया सव्वे समोववन्नगा?" हे भदंत ! समस्त असुरकुमार क्या एक जैसी आयुवाले होते हैं और क्या सब का उत्पाद एक ही होता है ? " गोयमा ! णो इणढे समढे" हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। से केणट्टेणं भंते ! गोयमा ! असुरकुमारा चउन्विहा पण्णत्ता"हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! असुरकुमार चार प्रकारके कहे गये हैं । “तं जहा" जैसे-“अत्थेगइया समाउया ते मिच्छादिट्ठी तेसिणं पंचकिरियाओ कज्जंति " 2 मसुरशुभा२। मिथ्याष्टि छ भनी पांय लिया जाय छे. “ तंजहा" ते २॥ प्रमाणे छ
“आरंभिया जाव मिच्छादसण वत्तिया” मालिीथी बने भिथ्या४शन प्रत्यया सुधानी “ एवं सम्मामिच्छीहिट्ठीणं पि से तेणगुण गोयमा !" એજ પ્રમાણે સમ્યકૃમિથ્યાદષ્ટિ અસુરકુમારેને પણ એજ પાંચ ક્રિયાઓ હેય છે. તે કારણે, હે ગૌતમ ! મેં એવું કહ્યું છે કે સમસ્ત અસુરકુમારે એક સરખી કિયાવાળા દેતા નથી.
હવે આયુષ્કપત્તિ સૂત્રનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવે છે, “ असुरकुमाराणं भंते! सव्वे समाउया सव्वे समोववन्नगा ?" હે ભદન્ત ! સમસ્ત અસુરકુમારે શું એક સરખા આયુષ્યવાળા હોય
मन त सौना पाई सर डाय छ ? “गोयमा! णो इणढे सम?" हे गौतम ! 2. प्रमाणे खातुनथी. " से केणटेण भंते ! " 3 महन्त ! म मा५ ॥ ४॥२४ छ। ? " गोयमा ! असुरकुमारा चउबिहा पण्णत्ता" गौतम ! असुरमा। या२ ॥२॥ य छे. “ तंजहा " ते
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧