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________________ દ भगवती सूत्रे समाउया समोववन्नगा १, अत्थेगइया समाज्या विसमोववन्नगा २, अत्थेगइया विसमाज्या समोववन्नगा ३, अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा " इति । " एवं जाव थणियकुमारा" इति एवं यावत्स्तनितकुमारा, इति एवम् = अनेन असुरकुमारोक्तप्रकारेण 'जाव' यावत् - यावच्छब्देन - नाग १ - सुपर्ण२ - विद्युत् ३- अग्नि४ - द्वीपो५ - दधि६ - दिशा ७ - वायुकुमाराणा८ - मष्टानां ग्रहणं भवति, स्तनितकुमाराचेति ॥ सू०४ ॥ ॥ इत्यसुरकुमारादिनिरूपणं समाप्तम् ॥ 66 समोववन्नगा " कई असुर ऐसे हैं जो समान आयुवाले हैं और साथ २ उत्पन्न हुए है । अत्थेगइया समाज्या विसमोववन्नगा " कोई कोई असुरकुमार ऐसे है जो एकसी आयुवाले तो हैं पर आगे पीछे उत्पन्न हुए है । “अत्थेगइया विसमाज्या समोववन्नगा " कितनेक असुरकुमार ऐसे होते हैं कि जो विषम आयुवाले होते हैं, और साथ २ उत्पन्न होते हैं । " अत्थेगइया बसमाज्या विसमोववन्नगा " कितनेक असुरकुमार ऐसे होते हैं, जो विषम आयुवाले और विषम उत्पत्तिवाले होते हैं । " एवं जाव थणियकुमाराणं " इस प्रकार यह पूर्वोक्त सब कथन स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये। यहां जो यावत् शब्द का प्रयोग किया गया है उससे - "नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार और वायुकुमार" इन आठ भवनपतियोंका ग्रहण किया गया है। सो इन आठ कुमारों में भी असुरकुमारोंकी तरह ही वक्तव्यता जाननी चाहिये ॥ सू०४॥ 66 अअरो मा प्रमाणे छे - " अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा ” डेंटला असुरडुभारो समान आयुवाजा मने साथै उत्पन्न थयेला होय छे, “ अत्थेागइया समाया विसमोववन्नगा " अर्ध अध असुरकुमारो समान आयुवाजा होय छे पशु भागज पाछा उत्पन्न थयेसा होय छे " अत्थे गइया विसमाजया समोववन्नगा " अ अ असुरकुमारी विषम आयुवाजा होय छे यागु साथै સાથે ઉત્પન્ન थयेसा होय छे, भने “ अत्थेगइया विसमाउया सिमोववन्नगा ” डेटला असुरसुभरी विषभ आयुवाणा होय छे भने विषभ उत्पत्तिवाजा होय छे. “ एवं जाव थणियकुमाराणं " આ પ્રમાણેનું પૂર્વોક્ત સમસ્ત કથન નિતકુમારે। સુધીના દેવાને લાગુ પાડવું જોઇએ. અહી " 66 " यावत् " शब्द द्वारा नागडुभार, सुथाणुभार, विधुकुमार, अभिभार, દ્વીપકુમાક, ઉદધિકુમાર, દિશાકુમાર, અને વાયુકુમાર ” આ આઠે ભવનપતિ દેવેશને ગ્રહણ કરવા જોઇએ તે આઠનુ વક્તવ્ય પણ અસુરકુમાર પ્રમાણે જ સમજવું. સૂ. ૪। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧ ८८
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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