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भगवतीसूत्रे क्रियाः, गौतम ! नायमर्थः समर्थः। तत्केनार्थेन ? गौतम !० नैरयिका स्त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सम्यगदृष्टयः मिथ्यादृष्टयः सम्यगमिथ्यादृष्टयः। तत्र खलु ये ते सम्यग्दृष्टयस्तेषां चतस्रः क्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-आरम्भिकी पारिग्रहिकी माया. प्रत्यया अप्रत्याख्यानक्रिया। तत्र खलु ये ते मिथ्यादृष्टयस्तेषां खलु पञ्चक्रियाः होते हैं । (से तेणटेणं गोयमा !) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि समस्त नारकीयजीव समान वेदनावाले नहीं होते हैं। (नेरइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? ) हे भदन्त ! समस्त नारकीयजीव क्या समान क्रियावाले होते हैं ? (गोयमा! णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( से केपट्टेणं० ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारणसे कहते हैं ? (नेरइया तिविहा पन्नत्ता) नारकीय जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं (तंजहा ) वे इस तरह से हैं ( सम्मद्दिट्ठी मिच्छदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी) एक सम्यग्दृष्टि, दूसरे मिथ्यादृष्टि और तीसरे सम्यग्मिथ्यादृष्टि ।(तत्थ णंजे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पन्नत्ताओ) इनमें जो सम्यग्दृष्टि नारकीयजीव हैं वे चार क्रियाएँवाले होते हैं । ( तंजहा ) वे इस प्रकार से हैं (आरंभिया, परिग्गहिया, मा. यावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया ) एक आरंभिकी क्रिया, दूसरी पारिग्रहिकी क्रिया, तीसरी मायाप्रत्ययाक्रिया और चौथी अप्रत्याख्यान क्रिया । ( तत्थ णं जे ते-मिच्छदिट्ठी) जो मिथ्यादृष्टि नारकीयजीव हैं वेहनावाज डाय छे. (से तेण णं गोयमा !) गौतम ! ते १२0 में એવું કહ્યું છે કે સમસ્ત નારક જીવ સમાન વેદનાવાળાં હોતાં નથી. ( नेरइयाण मंते ! सव्वे समकिरिया ? ) 3 महन्त ! समस्त न॥२४७। शु. समान यावा डाय छे ? ( गोयमा ! णो इण समद्रे ) गौतम ! समस्त ना२। समान लिया तi नथी. (से केणठेणं) 3 महन्त ! सा५ ॥ १२0 से जुडी छो ? (नेरइया तिविहा पण्णत्ता) ना२४ wो प्रारना या छ, (तं जहा) ते प्रा। 20 प्रमाणे - समद्रिी, मिच्छट्ठिी, सम्मामिच्छदिट्ठी) (१) सभ्यट, (२) मिथ्याष्टि, अन (3) सभ्यभिथ्याष्टि. ( तत्थण जे ते सम्मदिदी तेसिणं चत्तारि किरियाओ पन्नत्ताओ) तेभाना सभ्यष्टि ॥२४ ~ो छ तेस! या२ लिया। ४२ छे' (तं जहा) ते ॥ प्रमाणे छे-(आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाण किरिया) (१) मालिटी ठिया (२) पारियाडी छिया, (3) माया प्रत्यया छिया भने (४) अप्रत्याध्यान ठिया ( तत्थणं जे ते मिच्छदिट्ठी) 2 मिथ्याट ना२५
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧