________________
प्रमेयचन्द्रिकाटोका ० १ उ० २ सू० ३ नैरयिक निरूपणम्
४०१
क्रियते, तद्यथा - आरम्भिकी यावत् मिध्यादर्शनप्रत्यया । एवं सम्यक् मिथ्यादृष्टीनामपि तव तेनार्थेन गौतम १० ।
नैरयिकाः भदन्त ! सर्वे समायुष्काः सर्वे समोपपन्नकाः ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तस्केनार्थेन ! गौतम ! नैरयिकाश्चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - सन्त्येके समायुकाः समोपपन्नकाः १ सन्त्येके समायुष्काः - विषमोपपन्नकाः २ सन्त्येके विषमा( तेसि णं पंच किरियाओ-कज्जति) वे पाँच क्रियावाले होते हैं । ( तंजहा) वे इस प्रकार हैं ( आरंभिया, जाव मिच्छादंसणवत्तिया) आरंभिकी क्रिया, पारिग्रहिकी क्रिया, मायाप्रत्यया क्रिया, अप्रत्याख्यान क्रिया और मिथ्यादृष्टिप्रत्यया क्रिया । ( एवं सम्ममिच्छादिट्ठी णं वि-से तेणट्टेणं गोयमा० ) इसी तरह से सम्यग मिध्यादृष्टि नारकीय जीवों में भी जानना चाहिये | इसी कारण हे गौतम ! मैं ने ऐसा किया है । (नेरइयाणं भंते! सव्वे समाउबा सच्चे समोववन्नगा) हे भदंत ! समस्त नारकीयजीव क्या समान आयुवाले होते हैं ? समोपपन्नक होते है ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! (णो इट्ठे समट्ठे) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (से केणट्टेणं०) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( नेरइया चउव्विहा पन्नत्ता ) नारकीयजीव चार प्रकार के कहे गये हैं । ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं ( अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा ) कोई २ समान आयुवाले और समोपपन्नक, ( अत्थेगइया समाज्या
वो होय छे ( तेसिणं पंच किरियाओ कज्जति) तेभनी पांथ दिया होय छे, (तं जहा ) ते या प्रमाणे छे - ( आरंभिया, जाव जाव मिच्छा दंसण वत्तिया) (१) आरलिङ्गी डिया, (२) पारिग्रडिडी प्रिया, ( 3 ) भाया प्रत्यया दिया, (४) अप्रत्याभ्यान डिया भने (4) मिथ्यादृष्टि प्रत्यया ङिया ( एवं सम्म मिच्छादिट्ठी णं वि-से तेणद्वेगं गोयमा ! ) मेन प्रमाणे सभ्यभूमिथ्यादृष्टि नार જીવાની બાબતમાં પણ સમજવું. એ કારણે, હે ગૌતમ! મેં એવું કહ્યું કે समस्त नारी समान डियावाणां होतां नथी, ( नेरइयाणं भंते ! सव्वे समाTo asaraगा ? ) हे लहन्त ! समस्त नार व शुं समान आयुवानां होय छे? समोपपन्न होय छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( णो इणट्ठे सम ) मा अर्थ समर्थ नथी. ( से केणट्टेणं ) डे लहन्त ! आप शा अगे मेषु उहो छो ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( नेरइया चउव्विहा पन्नता) નારક જીવા ચાર પ્રકારના ह्या छे, ( तंजहा ) ते આ પ્રમાણે છે– ( अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा) (१) अ अ समान आयुषाणां मने सभोपपन्न, ( अत्थेगइया समाज्या विसमोववन्नगा ) (२) अ अ समान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧