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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ० २ सू०१ राजगृहनगरे समवसरणनिरूपणम् ३८१ __टीका-'रायगिहे नयरे ' राजगृहे नगरे, इति वाक्येन प्रथमोद्देशकस्य 'तेणं कालेणं ' इत्यादि चतुर्थ सूत्रं विलोकनीयम् । ' समोसरणं' समवसरणम् , अनेन पदेन प्रथमोद्देशकस्य पञ्चमं सूत्रं स्मरणीयम् । ' परिसा निग्गया' परिषत् निर्गता, अनेन पदेन प्रथमोद्देशकस्य षष्ठं मूत्रं चिन्तनीयम् । 'जाव एवं वयासी' यावत् एवमवादीत्-अत्र यावच्छब्देन " तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगबओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे इत्यादि सप्तमसूत्रादारभ्या आयु कर्मका वेदन नहीं करता है । (जहादुक्खणं दो दंडगा तहा आउएणं दो दंडगा एगत्तपुहत्तिया ) इस तरह “ एगत्तपुहत्तिया" एकवचन और बहुवचन को आश्रय करके जैसे दुःख कर्म के संबंध में दो दण्डक कहे गये हैं वैमानिक देवोंतक उसीप्रकार एकवचन और बहुवचन वाले दो दंडक आयुकर्म के विषय में भी कहना चाहिये । (एगत्तेणं जाव वेमाणिया, पुहुत्तेणं वि तहेव) एकवचन से यावत् वैमानिकतक और बहुवचन से भी वैमानिकतक ये दंडक कहना चाहिये। ___टीकार्थ-" रायगिहे नयरे ” इस वाक्य से प्रथमोद्देशकका " तेणं कालेणं तेणं समएणं " इत्यादि चौथा सूत्र देखना चाहिये । “ समोस रणं" इस पद से प्रथमोद्देशक का पाँचवा सूत्र देखना चाहिये । “परिसा निग्गया” इस पदसे प्रथमोद्देशकका छट्ठा सूत्र चिन्तवन करना चाहिये । " जाव एवं वयासी" यहाँ “ यावत् " शब्दसे । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अन्तेवासी इंदभूई अण भने ४४नु वेहन ४२तो नथी. ( जहा दुक्खेणं दो दंडगा तहा आउएणं दो दंडगा एगत्तपुहत्तिया) मा शत से क्यन मने महुवयननो माश्रय ने ખકર્મના વિષયમાં વૈમાનિક દેવો સુધીને લાગુ પડતાં જેમ બે દંડક કહ્યા છે, એવા જ પ્રકારના એકવચન અને બહુવચનવાળા બે દંડકે આયુકર્મના विषयमा ५y डा न . (एगत्तेणं जाव वेमाणिया, पुहुत्तेणं वि तहेव) એકવચનમાં વૈમાનિકે સુધી અને બહુવચનમાં પણ વૈમાનિકે સુધી એ દંડક કહેવા જોઈએ --" रायगिहे नयरे” २L पायथी प्रथम उदेशनु “ तेणं कालेणं तेणं समएणं " त्यादि याथु सूत्र ने नये. “ समोसरणं " 20 ५४थी २३ थतुं पडे उदेशनु पायभु सूत्र न . “ परिस्सा निगया " ! ५४थी ५३ थतां पडे उदेशनछसूत्रनो विया२ ४२३ न. “ जाव एवंवयासी” मी “यावत् ” ५४ द्वा२॥ " तेणं कालेणं तेणं समएणं ममणस्स भगवओ महावीरस्सजेटे अंतेवासी इंदभूई अणगारे” त्याहि सात सूत्रमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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