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________________ ३८० भगवतीसूत्र मायुष्कं वेदयति ! गौतम ! अस्त्येककं वेदयति अस्त्येकं नो वेदयति, यथा दुःखेन द्वौ दण्डको एकत्व पृथक्त्ववन्तौ एकत्वेन यावद्वैमानिकाः पृथक्त्वेनापि तथैव ॥ किसी एक कर्मका वेदन नहीं करता है । ( एवं चउधीस दंडएणं जाव वेमाणिए ) इसी तरह से चौबीसदण्डक में वैमानिक तक जानना चाहिये। अब बहुवचन की अपेक्षासे पूछते हैं (जीवाणं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेदेति ? ) हे भदन्त ! समस्त जीव स्वयंकृत दुःख का वेदन करते हैं क्या ? (गोयमा) हे गौतम ! ( अत्थेगइयं वेदेति अत्थेगइयं नो वेदेति ) समस्त जीव किसी एक दुःख का वेदन करते हैं और एक दुःखका वेदन नहीं करते हैं। (सेकेणटेणं गोयमा ! ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे गौतम ! (उदिण्णं वेदेति नो अनु दिण्णं वेति ) उदीर्ण दुःख को वे वेदते हैं और अनुदीर्ण दुःख को वे नहीं घेदते हैं । ( से तेणटेणं-एवं जाव वेमाणिया) इसीलिये मैं ऐसा कहता हूँ कि समस्त जीव किसी स्वयंकृतदुःखकर्म का वेदन करते हैं और किसी स्वयंकृत दुःख कर्म का वेदन नहीं करते हैं। इसी तरह से चौबीस दण्डक में वैमानिक देवोंतक जानना चाहिये। (जीवे गं भंते ! सयंकडं आउयं वेएइ ) हे भदन्त ! जीव स्वयंकृत आयु कर्म का वेदन करता है या नहीं करता है ? (गोयमा अत्थेगइए वेइए अत्थेगइए नो वेएइ) हे गौतम! एक जीवकिसी आयु कर्मका वेदन करता है और किसी ( एवं चउवीस दंडएणं जाव वेमाणिए ) यावीस ४४भा वैमानि। सुधी ॥ प्रमाणे ५ समन. वे मक्यननी अपेक्षा पूछे छ-(जीवाणं भंते ! सायंकडं दुक्खं वेदेति ?) के महन्त! समस्त । शु स्वयत हुनु वहन ४२ छ ? ( गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( अत्थेगइयं वेदेति अत्थेगइयं नो वेदेति ) । टस हु नु वेहन ४२ छ भने सानु वेहन ४२॥ नथी. (से केण द्वेणं) 3 महन्त ! २५ मे ॥ २णे ४ छ। ? (गोयमा!) उ गौतम ! ( उणिण्णं वेदेति नो अनुदिण्णं वेदेति ) ते! ही मनु वेहन ४२ छ, अनुही मनु वेहन ४२ता नथी. ( से तेणटेणं-एवं जाव वेमाणिया) तेथी दुई छु पो 23 मनु वहन ४२ छ भने કેટલાક દુઃખકર્મનું વેદન કરતા નથી. વીસ દંડકમાં વિમાનિક દેવો સધીમાં प्रमाणे समन्पु. (जीवे णं भंते ! सयंकडं आउयं वेएइ) 8 लहन्त ! १ स्वयत आयुश्मनु वेहन ४२ छ नथी ४२तो ? (गोयमा अत्धेगइए वेएइ अत्थेगइए नो वेएइ) गौतम ! ०१ | मायुश्मनु वेहन ४२ छ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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