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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. २ सू० १ रागगृहनगरे समवसरणनिरूपणम् ३७९ नो वेदयति तत् केनार्थेन भदन्त । एवमुच्यते अस्त्येककं वेदयति अस्त्येककं नो वेदयति ? गौतम ! उदीर्णे वेदयति अनुदीर्णे नो वेदयति, तत् तेनार्थे नैव मुच्यते अस्त्येककं वेदयति अस्त्येककं नो वेदयति, एवं चतुर्विंशति दण्डके यावद्वैमानिकाः । जीवाः खलु भदन्त ! स्वयंकृतं कर्म वेदयन्ति ! गौतम सन्त्येके वेदयन्ति सन्त्येके नो वेदयन्ति, तत्केनार्थेन ? गौतम उदीर्ण वेदयन्ति अनुदीर्णे नो वेदयन्ति तत्तेनार्थेन । एवं यावद्वैमानिकाः । जीवः खलु भदन्त ! स्वयंकृत श्रवण के बाद भगवान् का दर्शन कर परिषद् अपने २ स्थान को गई । गौतमने पूछा - ( जीवेण भंते! सयंकड़े दुक्खं वेएइ ) हे भदन्त ! जीव स्वयं कृतदुःख को वेदन करता है क्या ? ( गौयमा ) हे गौतम! (अस्थेगइयंवेएइ अत्थेगइयं नो वेएइ ) जीव किसी एक कर्मका वेदन करता है और किसी एक कर्मका वेदन नहीं करता है । ( से केणट्टेणं मंते ! एवं gar ) हे भदंत ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि ( अत्थेगइयं des, अत्थेगइयं नो वेएइ) जीवकिसी एक स्वयंकृत कर्मका वेदन करता है और किसी एक कर्मका वेदन नहीं करता है । (गौयमा ) हे गौतम! (उदिष्णं वेएइ) जीव उदीर्ण कर्म का वेदन करता है । (अणुदिष्णं नो des) अनुदीर्ण कर्म का वेदन नहीं करता है । ( से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं इ) इस कारण हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूँ कि ( अत्थेगइयं des अत्थेगइयं नो वेएइ) जीव किसी एक कर्म का वेदन करता है और ભગવાનનાં દર્શન કરવાને માટે તથા ધર્માંશ્રવણ કરવાને માટે પરિષદ આવી અને ધર્માંશ્રવણ કરીને લેાકેા પાત પેાતાને સ્થાને ગયા. ત્યારે ગૌતમ સ્વામીએ भगवानने पूछयु . ( जीवेणं भंते ! सयं कडं दुक्खं वेएइ ? ) हे लहन्त! शु व स्वयंङ्कृत हुःमनुं वेहन उरे छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( अत्थेगइयं des अत्थेगइयं नो वेएइ) व । भनुं वेहन उरे छे भने अदुर्भ झुरतो नथी. ( से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ ) आप शा अरो भेभ उडो छो वेएइ ) व अर्ध मेड मनुं वेहन रे उरतो नथी ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! उर्मनु वेहन उरे छे. ( अणुदिष्णं नो वेएइ ) नथी. ( से तेणद्वेण गोयमा ! एवं वुच्चर ) डे उडु छु डे ( अत्थेगइयं वेएइ, अत्थेगइयं नो रे छे भने मनु वेहन श्तो नथी, ( अत्थेगइयं वेएइ, अत्थेगइयं नो छे भने अमेड मनुं वेहन ( उदिण्णं वेएइ ) व उही अनुद्दीर्णा अर्मनु बेहन उरतो गौतम ! ते अरणे हु म dus) व अनु वेहन શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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