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________________ - - भगवतीसूत्रे नो अन्तं करोति, गौतम ! असंवृतोऽनगार आयुर्वर्जाः सप्तकर्मप्रकृतीः शिथिलबन्धनबद्धाः गाढबन्धनबद्धाः प्रकरोति, इस्वकालस्थितिकाः दीर्घकालस्थितिकाः असंवृत-अनगार-निरूपण 'असंघुडे णं भंते' इत्यादि । (भंते ) हे भदन्त ! (असंधुडे ) असंवृत (अणगारे) अनगार (किं) क्या (सिज्झइ ) सिद्ध होता है ? (बुज्झइ) बुद्ध होता है ? (मुच्चइ ) मुक्त होता है ? (परिनिव्वाइ) परिनिर्वृत होता है ? (सव्वदुक्खाणं मंतं करेइ ) समस्त दुःखों का अंत करता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (णो इणढे समझे ) यह अर्थ समर्थ-ठीक नहीं है । (से केणटेणं जाव णो अंतं करेइ ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि असंवृत अनगार न सिद्ध होते हैं, न बुद्ध होते हैं, न मुक्त होते हैं, न परिनिवृत होते हैं और न समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । (गोयमा) हे गौतम ! (असंखुडे अणगारे आउयवजाओ सत्तकम्मपगडीओ सिढिलबंधण बद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ) जो असंवत अनगार होते हैं वह आयुष्ककर्म को छोड़कर पहले जिन सातकर्म प्रकृतियों को उसने शिथिलबंधन से बाँधा था उन्हीं प्रकृतियों को वह गाढतरबंध से बांधने लगता है । (हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिड्याओ पकरेइ ) ह्रस्वकाल ___ वृत-मन॥२-नि०५४४'असंवुडेणं भंते ' इत्यादि । ( भंते ! ) महन्त ! ( असंवुडे अणगारे) मसत अणुमार (किं) शु (सिज्जइ) सिद्ध थाय छ ? (बुज्ज्ञइ) मुद्ध थाय छ १ (मुच्चइ) मुस्त थाय ? ( परिनिव्वाइ) पशिनिवृत थाय छ? ( सव्वदुक्खाणमंत करेइ) સમસ્ત દુઃખને અંત કરે છે? (गोयमा !) गौतम ! (णो इणद्वे समढे ) मा अर्थ समथ-१२।१२ नथी (तमे पूछया प्रमाणे पण मन्तु नर्थी ) ( से केणडेणं जाव णो अंत करेइ ) 3 महन्त ! २५ ॥ २२ मे ४ छ। ॐ मस वृत्त અણગાર સિદ્ધ થતા નથી, બુદ્ધ થતા નથી, મુક્ત થતા નથી, પરિનિવૃત થતા नथी, मन समस्त मानो मत ४२ता नथी ? (गोयमा !) गौतम ! ( असंवुडे अणगारे आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ ) मस वृत्त माशय मायुष्म सिवायनी સાત કર્મ પ્રકૃતિને પહેલાં જે શિથિલ બાંધી હતી સાતે કર્મ કૃતિને तेसा ॥ढत२ मधथी मांधवा मांउ छ.. (हस्सकालठिइयाओ दीहकालठियाओ पकरेइ) माछी स्थितिवाजी प्रतियाने तेसो ही શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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