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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. १ सू० २६ ज्ञानादिवतव्यतानिरूपणम् ३२७ त्रम् , तदुभयभविकं चारित्रम् , गौतम ! ऐहभविकं चारित्रम् नो पारभविकं चारित्रम् , नो तदुभयभविकं चारित्रम् , एवं तपः संयमः ।।मू० २६॥ १६॥ _____टीका-भवकारणीभूतमात्मारम्भादिकं निरूप्य साम्मतं भवाभावकारणीभूतं ज्ञानादिकं निरूपयन्नाह—'इह भविए णाणे' इत्यादि ।
'इह भविए भंते ' ऐहभविकं भदन्त ! ज्ञानं 'परभविए नाणे' पारभविकं ज्ञानम् ‘तदुभय भविए नाणे' तदुभयभविकं ज्ञानम् ? इति काकुपाठेन प्रश्नः। दर्शन भी इसी प्रकार से जानना चाहिये । (इहभविए भंते ! चरित्ते, परभविए चरित्ते, तदुभयभविए चरित्ते) हे भदंत ! क्या चारित्र ऐहभविक है ? या पारभविक है ? या तदुभयभविक है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( इहभविए चरित्ते) चारित्र ऐहिभविक है ( नो पारभविए चरित्ते ) पारभविक चारित्र नहीं है । ( नो तदुभयभविए चरित्ते ) और न तदुभयभविक ही चारित्र है । ( एवं तवे संजमे ) इसी तरह से तप और संयम भी जानने चाहिये ।
टीकार्थ-भव का कारणभूत आरंभ है। इस बात का निरूपण कर अब सूत्रकार भव के अभाव कारणभूत जो ज्ञानादिक हैं उसका निरूपण--" इह भविए नाणे" इत्यादि सूत्र द्वारा करते हैं-- ___ वर्तमान भव में जो ज्ञान रहता है वह ऐहिभविक ज्ञान है। वर्तमान भव के बाद अनन्तर भव में जो ज्ञान जीव के साथ जाता है वह परभविक ज्ञान है । तथा जो ज्ञान इस भव में और परभव में दोनों डाय छ. पारमावि डाय छ तलय मवि डाय ? ( गोयमा !) 3 गौतम ! ( इह भविएचरित ) शास्त्रि मेडिमावि जाय छे. (नो पारभविए चरित्ते ) यारित्र पारमावि तुं नथी. (नो तदुभयभविए चरित) मने तलय भविश्यारित्र पडतुं नथी. ( एवं तवे संजमे ) त५ भने सयमनी भासतमा પણ એ પ્રમાણે જ સમજવું.
ટીકાર્થ આરંભને ભવના કારણરૂપ ગણે છે. તે વાતનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર ભવના તથા અભાવના કારણરૂપ જે જ્ઞાનાદિક ગણાય છે. तेनु " इह भविए नाणे " त्यादि सूत्रीद्वारा नि३५९४ ४२ छ
વર્તમાન ભવમાં જ જે જ્ઞાન ટકે છે તે જ્ઞાનને ઐહભાવિક જ્ઞાન કહે છે. વર્તમાન ભવ પછીના ભાવમાં જે જ્ઞાન જીવની સાથે જાય છે તે જ્ઞાનને પારભવિક જ્ઞાન કહે છે. તથા જે જ્ઞાન આ ભવમાં અને પરભવમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧