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________________ ३२६ भगवतीसूत्रे अथ ज्ञानादिवक्तव्यता माह-- मूलम्-इह भविए भंते गाणे, परभविए णाणे, तदुभयभविए णाणे; गोयमा ! इह भविए वि नाणे, परभविए वि नाणे तदुभयभवि विए वि नाणे, दंसणं वि एवमेव, इह भविएभंते चरित्ते परभविए चरित्ते, तदुभयभविए चरित्ते, गोयमा! इहभविए चरित्ते नो परभविए चरित्ते नो तदुभयभविए चरित्ते, एवं तवे संजमे।सू०२६॥ छाया--ऐहभविकम् भदन्त ! ज्ञानम् , पारभविकं ज्ञानम् , तदुभयभविक ज्ञानम् , गौतम ! ऐहभविकमपि ज्ञानम् , पारभविकमपि ज्ञानम् , तदुभयभविकमपिज्ञानम् , दर्शनमपि एवमेव । ऐहभविकं भदन्त ! चारित्रम् , पारभविकं चारिय असंजया य" इत्यादि । इन सूत्रों का अर्थ स्पष्ट है इसी तरह से पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के भी अलापक कहना चाहिये ॥सू० २५॥ ॥ नैरयिकादि आत्मारंभादि वक्तव्यता समाप्त ॥ ज्ञानादिवक्तव्यता'इह भविए भंते ! णाणे' इत्यादि। (भंते) हे भदन्त ! (णाणे इहभविए, णाणे परभविए, णाणे तदुभयभविए ? ) क्या ज्ञान ऐहिभविक है, या ज्ञान पारभविक है, या ज्ञान तदुभयभविक है ? (गोयमा) हे गौतम ! ( इहभविए वि नाणे, परभविए वि नाणे, तदुभयभविए वि नाणे) ज्ञान ऐहिभविक भी है। ज्ञान पारभविक भी है । ज्ञान तदुभयभविक भी हैं। (दसणे वि एवमेव) असंजया य” इत्यादि. २॥ सूत्रानो अर्थ २५५ट छ. मे०८ प्रमाणे पवेश्या भने शुभलेश्यानुं तव्य ५५] समन्. ॥ सू. २५॥ | | નારક આદિ નું આત્મારંભ આદિ વક્તવ્ય સમાપ્ત . ज्ञानादि वक्तव्यता" इह भविए भंते ! णाणे" इत्यादि। ( भंते !) 3 महन्त ! (णाणे इहभविए, णाणे परभविए, णाणे तदुभय भविए ?) शु ज्ञान मेडिमावि डाय छ, पारमावि डाय छ, तलय. पारवि जाय छ ? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! ( इह भविए वि नाणे, परभबिए वि नाणे, तदुभयभविए वि नाणे) शान मैडिलविर ५९ डाय छ, ज्ञान सवि: ५ डाय छ, ज्ञान तमय मावि पाडाय छे. (दसणे वि एवमेव) शनना विषयमा ५५ २ प्रमाणे सम . (इह भविए भंते ! चरित्ते, परभविए परि , त भय भविएचरित्ते) 3 महन्त ! यात्रि मेडिमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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