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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ. १ सू० २३ वानव्यन्तरादिस्थित्यादिवर्णनम् २९९ मुहूर्तपृथक्त्वेन, आहारो जघन्येन दिवसपृथक्त्वेन, उत्कृष्टेनापि दिवसपृथक्त्वेन, शेषं तथैव । वैमानिकानां स्थितिर्भणितव्या औधिकी, उच्छ्वासो जघन्येन मुहूर्तपृथक्त्वेन, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत्पक्षैः। आहार-आभोगनिर्वर्तितो जघन्येन दिवसपृथक्त्वेन उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत्वर्षसहस्त्रैः। शेषं चलितादिकं तथैव यावत् निर्जरयति ॥सू०२३॥ (मुहुत्तपुहुत्तस्स ) मुहूर्तपृथक्त्व के बाद होता है । (आहारो) आहार (जहण्णेणं) जघन्य से (दिवसपुहुत्तस्स) दिवस पृथक्त्व के बाद और (उक्कोसेण वि) उत्कृष्ट से भी (दिवसपुहुत्तस्स) दिवसपृथक्त्व के बाद होता है (सेसं तहेव) अवशिष्ट कथन पहले की तरह ही जानना चाहिये । (वेमाणियाणं ठिई ओहिया भाणियव्वा) वैमानिकदेवों की स्थिति औधिकी जाननी चाहिये । ( उस्सासो जहण्णेणं मुहत्तपुहुस्सस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं) इनका उच्छ्वास जघन्य से मुहूर्तपृथक्त्व के बाद और उत्कृष्ट से तैंतीसपक्ष के बाद होता है। (आहारो आभोगनिव्वत्तिओ जहणणेणं दिवसपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं) इनका आभोगनिवर्तित आहार जघन्य से दिवसपृथक्त्व के बाद और उत्कृष्ट से तैतीसहजार वर्ष के बाद होता है । (सेसं चलिया इयं तहेव जाव निजरेंति ) बाकी समस्त कथन अर्थात् बंध, उदीरण, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्त. निकाचन ये तो अचलित कर्मों के होते हैं और निर्जरग चलित कर्मों का होता है-इत्यादि चलतादिक पुहत्तस्स) भुत थपिने मातरे भने 'उक्कोसेण वि' धारेभा पधारे पाप (मुहुत्तपुहुत्तस्स) भुत पृथत्यने मातरे थाय छे. 'आहारो' तेमनी माहार 'जहण्णेण दिवस पुहुत्तस्स' माछामा माछ। हिवसथत्वने मांतरे भने 'उक्कोसेण वि दिवस पुहुत्तस्स' वधारेमा धारे ५४ हिवस पृथत्वने सांतरे थाय छे. (सेसं तहेव) पाडीतुं ४थन नामानि ४थन प्रमाणे १ सभा (वेमाणियाणं ठिई ओहिया भाणियव्वा) वैमानि हेवोनी स्थिति मायुष्या सामान्य युवी ने. 'उस्सासो जहण्णेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेण तेत्तीसाए पक्खाण' वैमानि वोनो वासारवास माछामा माछ। भुत पृथत्वन तिरे अने पधारेभा पधारे 33 ५५वायांने मातरे थाय छे. 'आहारो आभोगनिव्वत्तिओ जहण्णेणं दिवसपुहुत्तस्स, उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं' તેમને આભોગનિવર્તિત આહાર ઓછામાં ઓછા દિવસ પૃથકત્વને આંતરે भने पधारेमा धारे तेत्रीस १२ वर्ष माह थाय छे. 'सेसं चलियाइयं तहेव जाव निज्जरेंति' गाडीतुं समस्त ४थन मेटले , मध, उही२५], वेहन, अ५વર્તન, સંક્રમણ, નિત્ત, અને નિકાચન અચલિત કર્મોનું થાય છે, અને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧