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अथ वानव्यन्तरादि निरूपणम् - मूलम् - वाणमंतराणं ठिईए नाणत्तं, अवसेसं जहा नागकुमाराणं एवं जोइसियाणंवि, णवरं उस्सासो जहण्णेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि मुहुत्तपुहुत्तस्स आहारोजहणणेणं दिवसपुहुत्तस्स उक्कोसेण वि दिवसपुहुत्तस्स, सेसं तहेव वेमाणियाणं ठिई भणिवव्वा ओहिया । उस्तासो जहष्णेणं मुहुत्तपुहुत्तस, उक्कोसेणं तेत्तीसाए पक्खाणं, आहारो आभोगनिव्वत्तिओ जहण्णेणं दिवसपुहुत्तस्स उक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं, सेसं चलियाइयं तहेव जाव निज्जति ॥ सू० २३ ॥
छाया - वानव्यन्तराणां स्थितौ नानात्वम्, अवशेषं यथा नागकुमाराणाम्, एवं ज्योतिष्काणामपि, नवरम् उच्छवासो जघन्येन मुहूर्तपृथक्त्वेन, उत्कृष्टेनापि - चाहिये । और यह " नो अचलितं कर्म निर्जरयन्ति " इस सूत्र के अन्त तक समझना चाहिये ॥ सू० २२ ॥
वानव्यन्तरादि निरूपण
' वाणमंतराणं ठिइए ' इत्यादि ।
( वाणमंतराणं ठिइए नाणत्तं ) वानव्यंन्तरों की स्थिति में नानात्वभेद है। (अवसेसं जहा नागकुमाराणं) बाकीका समस्त कथन नागकुमारों की तरह है । ( एवं ) इसी प्रकार से ( जोइसियाणं वि) ज्योतिष्क देवों के विषय में भी कथन जानना चाहिये । (णवरं ) परन्तु इस कथन में श्वासोच्छवास के विषय में अन्तर है और वह इस प्रकार से है कि ज्योतिष्क देवों का ( उस्सासो) उच्छ्वास ( जहणेणं) जघन्य से
ત્યાં સુધીનું કથન એ સૂત્ર પ્રમાણે સમજવાનું છે સૂ. ૨૨॥ वानव्यन्तरादि निरूपणम्-
वाणमंतराणं ठिइए' इत्यादि ।
भगवती सूत्रे
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
( वाणमंतराणं ठिइए नाणत्तं ) वानव्यन्तरोनी स्थितिमां लेह छे. ( अवसेसं जहा नागकुमाराण) माडीनुं समस्त उथन नागड्डुभारोना उथन प्रमाणे छे. (एवंजोइसियाण वि) न्योतिषि देवोना संबंधांप से प्रमाणे स्थन सभ
. (णवरं पण ते उथनमां श्वासोच्छ्वासना विषयमा आ प्रमाणे तावत छे-क्योतिषि देवाना (उस्सासो) २वास ( जहणेणं) ओछामा ओछो (मुहुत